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________________ 298] संक्षिप्त जैन इतिहास / साम्राज्य छिन्नभिन्न होगया ! मध्य भारत, गंगाप्रदेश, आंध्र और कलिङ्गदेश पुनः अपनी स्वाधीनता प्राप्त करनेकी चेष्टा करने लगे थे। सीमांत प्रदेशोंका यथोचित प्रबन्ध न होने के कारण विदेशीय आक्रमणकारियोंको भी अपना मभीए सिद्ध करनेका अवसर मिला था। मौर्यवंशकी प्रधान शाखाका यद्यपि उपरोक्त प्रकार अत हो उपरांत कालके गया था, किन्तु इस शाखाके वंशज जो मन्त्र मौर्य वंशज / प्रांतोंमे शासनाधिकारी थे, वह सामन्तोंकी तरह मगध और उसके आसपास के प्रदेशोंमें ई० सानवीं शताब्दि तक विद्यमान थे। ई० ७वीं शताब्दिमें एक पुराणवर्मा नामक मौयवंशी राजाका उल्लेख मिलता है। किन्हीं अन्य लेखोंसे मौयोका राज्य इंसाकी छठी, सातवीं और आठवीं शताब्दितक कोकण और पश्चिमी भारतमें रहा प्रगट है। ई० सन 738 का एक शिलालेख कोय (राजपूताना )के कंसवा ग्राममें पवल नामक मौर्यवंशी राजाका भिम है। इससे ईसाकी माठवीं शताब्दिमें राजपूताने में मौर्यवंश के सामंत रानाओंका राज्य होना प्रगट है। चितौड़का किला मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) का बनाया हुमा है। चित्रांग तालाब मी इन्हींका बनाया हुमा वहां मौजूद है। कहते हैं कि मेवाड़ो गुहिल वंशीय राजा बापा (कालमोनने मानमोरीसे चित्तौड़गढ़ लिया था। मानकल राजपूतानेमें कोई भी मौर्यवंशी नहीं है। हा, वहीं खानदेशमें निन मौर्य रामाभोंका राज्य था, उनके वंशज भवतक दक्षिणमें पाये नाते हैं और मोरे कहलाते हैं। १-माह. पृ. 75 / २--मापारा, मा०२.१३६१-कुमार पास-प्रबन्ध, पर -trrrrrent
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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