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________________ मौर्य साम्राज्य । [२८७ दर्शी राजा ऐसा कहते हैं:-मेरे राज्यमें सब जगह युक्त (छोटे कर्मचारी) रज्जुक (कमिश्नर) और प्रादेशिक (प्रांतीय अफमर) पांचर वर्षपर इस कामके लिये अर्थात् धर्मानुशासनके लिये तथा और कामों के लिये यह कहते हुए दौरा करें कि-" माता-पिताकी सेवा करना तथा मित्र, परिचित, स्वजातीय, ब्राह्मण और श्रमणको दान देना अच्छा है । जीव हिंग न करना अच्छा है। कम खर्च करना और कम संचय करना अच्छा है।" अपने राज्याभिषेकके १३ वर्ष बाद भगोकने 'धर्म महामात्र नये धर्मचारी नियुक्त किये । ये कर्मचारी समस्त राज्यमें तथा यवन, काम्बोज, गांधार इत्यादि पश्चिमी मीमापर रहनेवाली जातियोंके मध्य धर्मप्रचार करनेके लिये नियुक्त थे। यह पदवी बड़ी ऊँची थी और इस पदपर स्त्रियां भी नियत थो। धर्म महामात्रके नीचे 'धर्मयुक्त' नामक छोटे कर्मचारी भी थे जो उनको धर्मप्रचारमें सहायता देते थे। मशोकके १३वें शिलालेखने पता चलता है कि उन्होंने इन देशोंमें अपने दून अथवा उपदेश: धर्मप्रचारार्थ भेजे थे । अर्थात (१) मौर्य साम्राज्यके अन्तर्गत भिन्न भिन्न प्रदेश, (२) सामाज्यके सीमान्त प्रदेश और सीमापर रहनबाली यवन, काम्बोज, गान्धार, राष्ट्रिक, पितनिक, भोज, आध्र, इलिन्द आदि जातियों के देश; (३) साम्राज्यकी जंगली जा'तयों प्रान्त, (४) दक्षिणी भारतके स्वाधीन राज्य जैसे केरलपुत्र, (चे ), मत्य पुत्र (तुलु-कोकण), चोड़ (कोरोमण्डल ), पांड्य (मदुग व तिनाम्ली निले), (६)
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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