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अन्य राजा और जैन संघ। [५७
(३) ঞ্জ হাজী জহ জাল স্থ। दिगम्बर-श्वेतांबर-भेद; उपजातियोंकी उत्पत्ति।
(सन् १०० ई० पू०-सन् २०० ई०) ईसवीकी प्रारम्भिक शताब्दियों सुतरां उससे भी किंचित् पह
लेका भारतीय इतिहास अन्धकारापन्न है। तत्कालीन जैनधर्म। उस समयका कुछ भी ठीक पता नहीं
चलता। तौभी जो कुछ भी परिचय प्राप्त है, उसके आधारसे यहापर इस कालमें जैनधर्मके अस्तित्वका ज्ञान कराया जाता है । शक और कुशन आदि विदेशियोंका राज्य ई० से पूर्व प्रथम शताब्दिसे भारतमे उत्तर पश्चिमीय सीमा प्रांतसे लेकर पंजाब, मथुरा और मालवा तक जमा हुआ था और इन स्थानों एवं इन विदेशियोंमें जैनधर्मकी मान्यता भी विशेष थी, यह लिखा जाचुका है। इनके अतिरिक्त उस समय उत्तर भारतमें जैनोंका सम्पर्क किन २ राजवंशोंसे था, यह ठीकसर बताना कठिन है। रोटेलखण्ड उस समय अहिच्छत्रके राजाओंके अधिकारमें था।
अहिच्छत्र (रामनगर-बरेली) के राजा लोग अहिच्छत्रके राजवंशमें नागवंश अनुमान किये गये हैं। इस जैन धर्म। वंशका अस्तित्व भारतमें महाभारतकाल
अथवा राजा तक्षक नागके समयसे प्रमाणित है। यद्यपि यह वंश विदेशी और संभवतः हूण जातिका था; किन्तु
१-कंजाई, पृ० ४१२।