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उत्तरी भारतके अन्य राजा वजैनधर्म। [१५७ का देवकुंडके जैनमंदिरमे मिला है; जिसमे वहांके जैनश्रेष्टी दाइड द्वाग निर्मित जैनमंदिरको महाराज विक्रमसिहने जो दान दिया था. उसका उल्लेख है। दाहड़ जायसपुरसे आये हुये वणिक जासूकके वंशमे था। उसके बडे भाई ऋपिको विक्रमसिहने श्रेष्टीपद प्रदान किया था । दाहड़ने श्री लाटवागटगणके जैनाचार्य विजयकीर्तिके उपदेशसे भव्य जैनमंदिर बनवाया था। यह कच्छप राजा परमारोंके सामन्त प्रतीत होते है।' मालवाके परमारामे नरवर्मा भी प्रसिद्ध राजा था। गुजरातके
राजा जयसिंहसे उसका युद्ध हुआ था, जिसमें राजा नरवाके सम- उसे पराजित होना पड़ा था। नरवर्मा विद्वान यगे जैन धर्म। था, मन् ११०४ की नागपुरवाली प्रशस्ति
उसीकी रचना है। उदयादित्यके निर्माण किये हुये वर्णो तथा नामो एवं धातुओंके प्रत्ययोंके नागबंध चित्र उसने 'उन गांव (इन्दौर) में खुदवाये थे। ये वहांके जैन मंदिरमें अव भी मौजूद है। यह मंदिर पहले विद्यालय था । विद्या और दानमें नग्वर्माकी तुलना भोजसे की जाती थी। उसके समयमें भी मालवा विद्यापीठ समझा जाता था और जैन तथा वैदिक मतावलंबियोंके बीच शास्त्रार्थ भी हुये थे। महाकालके मंदिर में जैनाचार्य रत्नसूरि और जैव विद्याशिववादीका परस्पर एक बड़ा भारी शास्त्रार्थ हुआ था। जैनाचार्य समुद्रघोप भी नरवर्माकी सभामें मौजूद थे और उसकी विद्वत्तापर नरवर्म बड़े प्रसन्न थे। अभयदेवसूरिके 'जयन्तकाव्य' की
-मप्राजैस्मा० पृ० ७३-७६ । २-भाप्रारा०. भा० ३ पृ० १९५ । ३-मप्राजैस्मा० पृ० ९२ ।