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संक्षिप्त जैन इतिहास |
बंधवाकर टल्वा दिया था; परन्तु वह अपने आत्मबलसे बन्धनमुक्त होगये थे । इस कारावासकी दशामे ही मुनि मानतुङ्गजीन प्रसिद्ध भक्तामर स्तोत्र रचा था जिसका छ्यालीसवां काव्य रचने२ ही उनके वन्धन अपने आप नष्ट होगये थे। उनके माहात्म्यसे प्रभावित हो कहने है कि राजा भोज और कवि कालिदास भी जैन धर्मानुयायी होगये थे ।' जैन कवि धनंजय भी राजा भोजके समकालीन बताये जाते है। इन्होंने अपने पुत्रको सर्पदशके विषसे मुक्त करनेके लिये विषापहार स्तोत्र' की रचना की थी। इनके अन्य ग्रन्थ नाम-माला, द्विसंधानकाव्य, विपापहारस्तोत्र. वैचकनिघंटु आदि है । ब्रह्मदेवके अनुसार 'द्रव्यसंग्रह' के कर्त्ता श्री नेमिचंद्राचार्य श्री भोजदेवके दरवारमे थे । नयनंढि नामक जैनाचार्यने अपना सुदर्शन चरित्र इन्हींके राजत्वकाल्मे समाप्त किया था ।
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भोजने चालीस वर्षतक राज्य किया था और उसके वाद संभवत उसका पुत्र जयसिह गद्दीपर बैठा था । इसके समयमे राजा भोजके साम्राज्यपर विपत्तिके वादल छागये थे, जिनको इसके उत्तराधिकारी उदयादित्यने दूर किया था ।
राजा भोजका समकालीन कच्छपघात ( कच्छवाहा ) वंशी राजा अभिमन्यु था और उसकी प्रशंसा स्वयं भोजदूवकुंडके कच्छवाहे राजने की थी। यह राजा चडोभनगर (टूबकुंडव जैनश्रेष्टी दाहड़ । शिवपुर) से राज्य करता था । इसके नाती विक्रमसिंहका एक शिलालेख संवत् १९४५
१- भक्तामर कथा - जैप्र० पृ० २३९ । २- मजैड़० पृ० ५६ | ३ - मप्रानैस्मा०, भूमिका पृ० २० । ४- अहि०, पृ० ३१७ ।