________________
१५८] संक्षिप्त जैन इतिहास । प्रगन्तिमे नग्वांका जैन वल्लभमरिके चरणोंपर सिर झुकाना लिया है। नग्बकि पुत्र यशावमांने अपनी आग्मे जैनधर्मावलम्बी मंत्री जैनचद्रको गुजरातका हाक्मि नियत किया था। परमार राजाओंका मर्थ गुजगतमे हानेका ही यह परिणाम प्रतीत होता है कि तांवर जैनाचार्य भी मारवाकी और आगये ज माने गजग्वारमे मान्यता प्राप्त की थी। इमी वनका विन्ध्यवमा नामक राजा भी विद्याका वडा अनु
गगी था उसके मंत्रीका नाम विल्हण था। 'कविवर आशाधर । कविवर आगाधरकी मिन्नता इनसे अधिक
श्री। आगावर एक प्रसिद्ध जैन पण्डित होगये है । ई० सन ११९२ मे दिल्लीका चौहान राजा पृथ्वीराज शाहाबुद्दीन गारीमे हार गया था. इस कारण उत्तरी भारतमें मुमलमानोंका आतंक छा गया था। अनेक हिंदू विद्वानोंको अपना नंग छोड़ना पड़ा था । कविवर आगाधर भी ऐमे विद्वानोंमेसे एक थे । मूलमे आगाधर सपादलक्ष देशके मंडलकर ( माडलगढ़मेवाड ) नामक ग्रामके निवासी थे। तब यह देश चौहानोंके अजमेर राज्यके अंतर्गत था । आशाधरजीका जन्म वि० सं० १२३५ के लगभग बघरवाल जैन श्रेष्टी सल्लमणकी भायां रनीकी कोखसे हुआ था । मुसलमानोंके आतन्कसे बचनेके लिये आगाधर सपरिवार धागनगरीमे जाबमे थे । गरानगरीमे उन्होंने वादिराज पं० धरमेनके गिप्य पं० महावीरसे जैनेन्द्र व्याकरण और जैन सिद्धांत
१-माप्रारा० मा० १ पृ० १४४-१४५। २-भाप्रारा० भा० १ पृ० १५६ ।