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हर्षवर्धन और चीनी यात्री हुएनत्सांग। [१०७. करती थी। वालविवाह नहीं होते थे। हर्पकालीन सामाजिकस्थितिके विपयमे श्रीकृष्णचन्द्र विद्यालङ्कार
का कहना है कि "(वैदिक कालीन) भारतके सामाजिक स्थिति । सामाजिक जीवनकी सबसे मुख्य संस्थामे वर्ण
व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था है। हर्षकालमें इन दोनों संस्थाओका अस्तित्व सुसंगठित रूपमे विद्यमान था; यद्यपि बौद्धों और जैनियोके समानतावादके प्रचारके कारण ये दोनों संस्थायें उत्तने आदर्श और व्यापक रूपमे नहीं रही थीं। हर्षकालमें बौद्धो और जैनियोकी बहुत बड़ी श्रेणिया विद्यमान थीं। इनके अनुयायियोंकी संख्या बहुत अधिक थी। उत्तर भारतमें वौद्धो और दक्षिणी पश्चिमी भारतमे जैनियोंका काफी जोर था। बहुतसे प्रातीय राजा भी इनके अनुयायी थे। इनके धार्मिक सिद्धात और रीति-रिवाजका भी तत्कालीन समाजमे साधुओं, तपस्वियो, भिक्षुओं और यतियोका एक बड़ा भारी समुदाय था, जो उस समयके समाजमे विशेष महत्व रखता था। बहुतसे साधु शहरों व गावोमे घूमर कर लोगाको उपदेश एवं शिक्षा दिया करते थे। यही हाल बौद्ध भिक्षुओं और जैन साधुओका भी था। साधारणतः लोगोके जीवनको नैतिक एवं धार्मिक वनानेमे इन साधुओं, यतियो और भिक्षुओंका वडा भारी भाग था। बौद्धोंके मठों, जैन यतियोंके उपाश्रयों और हिंदुओंके मंदिरोंमे शिक्षणालय होते थे। बौद्ध, जैन और ब्राह्मणधर्ममे पारस्परिक द्वेष नहीं था। वौद्ध और जैनधर्मके प्रचारके कारण लोगोंमे मास भक्षणकी रुचि अधिक रूपसे नहीं रही थी।
३-भाइ० पृ० १०४