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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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दरवारमे वाकवि प्रसिद्ध थे | उनने 'हर्षचरित ' नामक ऐतिहा मिक पुस्तक बड़े कामकी लिखी है। उसमे लिखा है कि हर्ष राजा जब गहन जङ्गलमे जापहुंचा तो उसने वहा अनेक प्रकार के तपस्त्रीदेखे | उनमे नग्न आई ( जैन ) साधु भी थे। सन् ६४७ ई० मे हर्पका देहान्त होगया था । उसके साम्राज्यके छिन्न भिन्न होने ही उत्तर भारतमे सर्वत्र अशाति फैलाई थी ।'
हर्षवर्धनका शासनकाल अपनी सामाजिक उदारता लिये भी उल्लेखनीय है । इस समय अर्थात् सातवीं
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धार्मिक उदारता | शताब्दीमे धार्मिक कट्टरताका जोर नहीं दिखाई पड़ता था । स्वयं सम्राट् हर्षवर्धन सब धर्मोका आदर करते थे, यद्यपि उनके निकट शिव, सूर्य तथा बुद्धकी मान्यता विशेप थी । हर्षक भाई बहिन बौद्ध थे और उनके पिता सूर्यकी उपासना करते थे । इस कालसे पहले हुये प्रसिद्ध कोपकार अमरसिंहके समयमे भी इस उदारताका होना संभव है । स्वयं अमरसिंह बौद्ध थे और उनकी पत्नी जैन थीं । जैन कवि धनंजयकी सहधर्मिणी बौद्ध धर्मका आदर करती थीं। यह परिस्थिति धार्मिक कट्टरताके अभावकी द्योतक है । इस नमय बौद्धधर्मकी अवनति होरही थी । जैनधर्मका उत्तरीय भारतमे पहले जैसा विशेष प्रचार प्रगट नहीं होता। अधिकांश जनता पौराणिक हिंदू धर्मको मानती थी । ब्राह्मणलोग प्रभावशाली थे । पर्दाका रिवाज नहीं था । हर्षकी विधवा वहिन राज्यश्री राजसभामे बैठनी और वार्तालाप
१-भाइ० पृ० १०३-१०४।२ - जैन मित्र वर्ष ६ अंक ४ पृ० ११ ।