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हर्षवर्धन और चीनी यात्री हुएनत्सांग। [१०५ तक और नेपालसे नर्मदातक सारे देश अपने आधीन कर लिये थे। परन्तु सन् ६२० ई० में जब वह विजयकी लालसासे दक्षिणकी
ओर बढ़ा तो चालुक्य वंशके प्रसिद्ध राजा पुलकेशी द्वितीयने उसे हरा दिया। हर्पने कन्नौजको अपनी राजधानी बनाया था और वह शातिपूर्वक राज्य करता रहा । उसने एक संवत् भी चलाया था; परन्तु वह अधिक दिनोंतक नहीं टिका ।
हर्पका शासन प्रवन्ध वडा अच्छा था । हर्ष वर्षाऋतुमे भी सारे देगमे दौरा करता था और बदमाशोंको दण्ड तथा भले आठमियोंको इनाम देता था। उसका फौजदारी कानून कड़ा था । ' सरकारी दफ्तरोंका प्रबन्ध अच्छा था। शिक्षाका भी खूव प्रचार था'।' नालन्दका बौद्ध विश्वविद्यालय प्रख्यात् था । समाजमें विद्वानों और पण्डितोंका राजाओसे भी अधिक मान था। सड़कोंपर धर्मशालायें थीं। उनमे दीन-हीन पथिकोंको भोजन और वीमारोंको औषधि भी मिलती थी। किसानोंमे उपजका छठा भाग लिया जाता था। राज्य कर्मचारियोंको उचित वेतन मिलता था। लोग सत्यवादी और सरल हृदय थे। राजा सव धर्मोका आदर करता था। उसने अपने राज्यमें जीवहिसा तथा मांस भक्षणकी मनाही करदी थी। जो कोई इस आज्ञाको नहीं मानता था, उसे प्राणदण्ड मिलता था। प्रत्येक पाँचवें वर्ष राजा हर्ष वडे समारोहसे प्रयाग जाता था और गंगा-यमुनाके संगमपर दान करता था । हर्ष विद्वान् भी बड़ा था। वह स्वयं गद्य-पद्यमय रचनायें रचता था। उसके लिखे हुये नागानन्द रत्नावली और प्रियदर्शिका नाटक अभीतक मौजूद है। उसके
१-भाइ० पृ० १००-१०३