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________________ ९०] संक्षिप्त जैन इतिहास । राजधानी उज्जैन व्यापारका केन्द्र था और उसमे विद्वानोंका अच्छा जमाव था। ज्योतिष विद्याका यहा एक अच्छा विद्यालय था। जिसमें नक्षत्रों और तारोंकी परीक्षा होती थी। प्राचीन कालसे पश्चिमके अगणित वंदरगाहोंके साथ उज्जैनका सम्पर्क था। चंद्रगुप्तके राजकालमे उसकी उन्नति खूब हुई। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्यके शासनकालमे फाशान नामक चीनी यात्री भारतमे आया था। चीन देशसे चलचीनी यात्री फाह्यान । कर वह भारतके उत्तर पश्चिमीय सीमा प्रातके मुहानेमे भारतमे प्रविष्ट हुआ था । वह छ. वर्षे तक भारतमे घूमता रहा था। भारतमे आकर उसने बौद्ध धर्म और पाली एवं संस्कृत भापाका अध्ययन किया था। बौद्धधर्म संबंधी अनेक ग्रन्थोंको वह चीन लेगया था। सचमुच फाह्यानका धर्म प्रेम अत्यन्त सराहनीय और अनुकरणीय है। इस यात्रामे उसे कुल १५ वर्ष लगे थे। उसने अपने भ्रमण-वृतातमें तत्कालीन भारतका अच्छा वर्णन लिखा है। उसने भारतके मध्य देग' के सम्बन्धमे लिखा है कि प्रजा प्रभूत और सुखी है । व्यवहारको लिखा पढ़ी और पंचायत कुछ नहीं है। वे राजाकी भूमि जोतते है और उसका अंश देते है,जहा चाहें जाय, जहा चाहें रहें । राजा न प्राण दण्ड देता है न शारीरिक दण्ड देता है। अपराधीको अवस्थानुसार उत्तम साहस वा मध्यय साहसका अर्थ दण्ड दिया जाता है। वार कार दस्युकर्म करनेपर दक्षिण करच्छेद किया जाता है । राजाके प्रतिहार और सहचर वेतन भोगी होते है । सारे देशमे सिवाय चाडालके कोई अधिवासी न जीव हिंसा करता है, न मद्य पीता है और
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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