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________________ मौर्य साम्राज्य । [२६३ विधान रखना जैनधर्ममें परमावश्यक है।' बड़ीसुश्रूषा वैयावत्यकी द्योतक है। बड़ा भय संसारका भय ६३ और उससे छूटनेका दृढ़ अनुराग बड़ा उत्साह है।' (९) अशोक धर्म पालन करने का उपदेश देते थे और धर्म यही बताते थे कि 'व्यक्ति पापाश्रव (अपासक)से दूर रहे, बहुतसे अच्छे काम करे, दया, दान, सत्य और शौचका पालन करे ।' अशोकने ज्ञान दान दिया था पशुओं और मनुष्यों के लिये चिकित्सालय खुलवाकर औषधिदानका यश लिया था. वृद्धों और गरीबोंके भोजनका प्रबंध करके माहारदानका पुण्यवंध उपार्जन किया था और जीवोंको प्राण-दक्षिणा देकर, परमोत्कृष्ट अभयदानका अभ्यास किया था। जैनधर्ममें दान ठीक इसी प्रकार चार तरहका बताया गया है। जैनधर्ममें ही कर्मवर्गणाओंके आश्रव होनेपर पापबन्ध होता लिखा है।" अशोक भी पापकी व्याख्या ठीक ऐसी ही कर रहा है। पापकी व्याख्या वैदिक और बौद्धधर्मो के सर्वथा प्रतिकूल है; क्योंकि इन दोनों दर्शनोंमें कर्म १-मुला० पृ० ११ व । २-अष्टपाड पृ. २३५ । ३-जिणवयणमणुगणेता संपार महाभयपि चितंता । गमवसदी भीदा भीदा पुण जम्ममरणेषु ॥८०५॥-मुला० । णस्थि भय मरणे समं।' -मूला० । ४-उच्छंस्वभावणावं पसंघसेवा सुदंसणे सन्द्रा । ण जहदि जिण सम्मतं फुब्बतो गाणमग्गेण ॥१४॥ अष्ट० पृ० ८९॥ ५-६. अध० पृ. ३१७-द्वितीय स्वंभलेख । -अध० । ..८-अघ० पृ. ३७३-३८०-सप्तम स्तंभलेख । ९ अध० पृ० ३१७ द्वितीय स्तंमलेख । १०-तंत्वार्य० पृ० ५५। ११-प्रवचनसार टीका खंड २ पृ. १३२ १ तत्वार्थ० पृ० १२४ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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