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२६२) संक्षिप्त जैन इतिहास । समझाते हैं और खूब ज्ञान गुदड़ी लगती है । मलम होता है कि अशोक ने अपनी धर्मयात्रायोंका ढांचा जनसंघके आदर्शपर निर्मित किया था।
(७) सर्व प्राणियों की रक्षा, संयम, समाचारण और मार्दव ( सवभूतानं अउति, संयम, समचरियं, मादवं च ) धर्मका पालन करनेकी शिक्षा अशोर ने मनुष्यों को परभव सुखके लिये समुचित रीत्या दी थी। जैनधर्ममें इन नियमोंका विधान मिलता है। समाचरण वहां विशेष महत्व रखता है । जैन मुनियोंका आचरण 'समाचार' रूप और धर्म साम्यभाव कहा गया है। सर्व प्राणिवोंकी रक्षा, संयम और मार्दव नेनोंके धर्मके दश अंगों में मिलते हैं।'
(८) मशोक कहते हैं कि 'एकान्त धर्मानुराग, विशेष मात्मपरीक्षा, बड़ी सुश्रूषा, बड़े भय और महान् उत्साह के बिना ऐहिक
और पारलौकिक दोनों उद्देश्य दुर्लभ हैं। जैनों को इस शिक्षासे कुछ भी विरोध नहीं होसक्ता । श्राव के लिये धर्मध्यानका अभ्यास करना उपादेय है और भात्मपरीक्षा करना-प्रतिक्रमणका नियमित
...१-अध० पृ० २५०-त्रयोदश शि०।। २-समदा सामाचारो सम्माचारो समो व भाचारो।
सम्वेसिहि सम्माणं सामाचारो दु आचारो ॥२३॥॥ मूला1. अथवा:-"चारितं खलु धम्मो, धम्मो जो सो समोति णिहिो ।
मोहवखोह विहीणो, परिणामो अप्पणो हि समो ॥॥ प्रवचनसार । . ३-"संतीमदव अज्जव लाघव तव संजमो मचिणदा।
वह होइ बह्मचेरं सच्चं चाभो य दस धम्मा ॥७५२ ॥-मूला। ४-अध० पृ० ३१०-प्रथम स्तंभलेख । ५-अष्टपाहुइ पृ० १४ { २२१ ३४