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मौर्य साम्राज्य |
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है ।' जैन शास्त्रोंमें जैन राजाओंके लिये 'देवानां प्रिय 'का प्रयोग हुआ मिलता है | भगवान महावीरके पिता राजा सिद्धार्थको भी लोग 'देवानां प्रिय' कहकर पुकारते थे और उनकी माता रानी त्रिशलाको 'प्रियकारिणी' कहते थे ।
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अशोकपर जैनधर्मका विशेष प्रभाव पड़ा था । वह अपने पितामह और पिता के समान जैन धर्मानुयायी ही था; यद्यपि अपने धर्मप्रचार के समय उसने पूर्ण उदारता से काम लिया था और जैन धर्मके आधारपर अपने धर्मका निरूपण किया था । बौद्ध ग्रंथ 'महावंश' के आधारपर विद्वान् उसे ब्राह्मण धर्मानुयायी बतलाते किन्तु इस ग्रन्थके कथन निरे कपोल-कल्पित प्रमाणित हुये हैं ।" इस कारण उसपर विश्वास करना कठिन है, तिसपर सिंहलके लोगोंके निकट ब्राह्मणसे भाव वौद्धेतर संप्रदायोंका होना उचित दृष्टि पड़ता है; " क्योंकि बौद्ध ग्रन्थोंमें ब्राह्मण और श्रमण रूप जो उल्लेख हैं; उनमें भ्रमण से भाव चौद्ध भिक्षुओंका है । और ब्राह्मण केवल वेदानुयायी ब्राह्मणोंका द्योतक नहीं हो सक्ता । उसके कुछ व्यापक अर्थ ठीक जंचते हैं । इस कारण यह संभव है कि इसी भाव से सिंहलवासियोंने अशोकको बौद्ध न पाकर उसे ब्राह्मण ( बौद्ध - विरोधी ) लिख दिया है। वरन् एक उस राजाके लिये जिसके पितामह और पिता जैनी थे, और जिसका प्रारंभिक जीवन
१ - अघ० द्वितीय अध्याय, व ईऐ० भा० २० पृ० २३२ । २ - कसू० पृ० २६-३० व ५४ । ३- अशोक० पृ० २३ । ४-अशोक पृ० २३ - ४७, भाभशो० पृ० ९६, मैबु० पृ० ११० । ५ मि० ई० टॉम खा० भी यही ठीक समझते हैं। जराएसो० भा० ९ पू० १८१ ।
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