SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० ] संक्षिप्त जैन इतिहास । करना भी था। इसके लिये अशोकने भरसक प्रयत्न किया। उसके महामात्र राज्यमें दौरा करते थे और जनताको धर्मका उपदेश करते थे । प्रत्येक वर्ष में कुछ दिन ऐसे नियत कर दिये गये जिनमें राजकर्मचारी सर्कारी काम करनेके अलावा प्रजाको उसका कर्तव्य बतलाते थे । जनसाधारणके चाल-चलनकी निगरानी के लिये निरीक्षक नियुक्त थे। इनका काम यह देखना था कि लोग मातापिताका आदर करते हैं या नहीं, जीव हिंसा तो नहीं करते । ये लोग रानवंशकी भी खबर रखते थे। स्त्रियोंके चाल-चलनकी देखभालके लिये भी अफसर थे। राज्यका दान विभाग अलग था। यहांसे दीनोंको दान मिलता था। पशुओंको मारकर यज्ञ करनेकी किसीको आज्ञा नहीं थी। अशोक एक बड़ा राजनीतिज्ञ, सच्चा धर्मात्मा और प्रजापालक अशोकको वैयक्तिक राजा था। इसकी अभिलाषा थी कि प्रत्येक ___ जीवन । प्राणी अपने जीवनको सफल बनाये और परभवके लिये खुब पुण्य संचय करे । दया, सत्य, और बड़ोंका आदर करनेपर वह बड़ा जोर देता था। वह प्रजाके सुखमें अपना सुख और दुःखमें दुःख समझता था ! वह एक आदर्श राना था और उसकी प्रजा खुब सुखी और समृद्धिशाली थी। वह अपने अभिषेकके वार्षिकोत्सव पर एक एक कैदी छोड़ा करता था। इससे प्रगट है कि उसके राज्यमें मपराध बहुत कम होते थे और जेलखानोंमें कैदियोंका जमघट नहीं रहता था। उसकी एक . उपाधि 'देवानां प्रिय' थी और उसे 'प्रियदर्शी भी लिखा गया १-भाइ० पृ० ७३-७४ । २ भाप्रारा० भा० ३ पृ० १३१ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy