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मौर्य-साम्राज्य।
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काश्मीरमें उसने एक नई राजधानी वसाई; जिसका नाम श्रीनगर रक्खा । नेपाकमें भी ललितपाटन नामक एक नई राजधानी स्थापित की थी। दक्षिण भारतमें नेलोर प्रदेशसे लेकर पश्चिमी किनारे अर्थात कल्याणपुरी नदीतक उसका राज्य था। इस प्रदेशके दक्षिणमें जो पांड्य, केरलपुत्र और सतियपुत्र तामिल राज्य थे, वे स्वतंत्र और स्वाधीन थे । इस प्रकार दक्षिणके थोड़ेसे भागके अतिरिक्त सारे भारतवर्ष में उसीका साम्राज्य था।
इस वृहत साम्राज्यको अशोकने कई भागोंमें विभक्त कर रक्खा था। इनमें मध्यवर्ती भागके अतिरिक्त शेष भागोंमें चार राजप्रतिनिधि-संभवतः राजकुमार राज्य करते थे। एक रानप्रतिनिधि तक्षशिलामें रहता था दूसरा कलिंग प्रांतकी राजधानी तोपलीमें, तीसरा उज्जैनमें और चौथा दक्षिण में रहकर सारे दक्षिणी देशपर शासन करता था। उनके राज प्रतिनिधि मालवा, काठियावाड़ और गुजरातका शासन प्रबंध करता था। कलिंगके शाप्तनकी अशोको बड़ी फिकर रहती थी। वहांपर उसके राज्यप्रतिनिधि कमी२ अच्छा शासन नहीं करते थे। इसलिये उसने वहांपर दो शिलालेख खुदवाकर रानप्रतिनिधियोंको समुचित शिक्षा दी थी।
अशोभने शासन प्रबन्ध धर्मको प्रधान स्थान दिया था। अशोकका शासन इसी कारण उसके राज्यमें राष्ट्रका रूप बदल . प्रवन्ध। गया था। राजनीति संबंधी कार्योंमें धार्मिक कार्य आ मिले थे। इसलिये 'राज्यका कर्तव्य न केवल देशमें शांति 'स्थापित रखना और प्रजाकी रक्षा करना था, वरन् धर्मका प्रचार
• १ लाभाइ०. पृ० १५५-१७६ ॥ २-अधः पृ० ३७.. .