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२५२] संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनोंके दो प्रधान नगरों तक्षशिला और उन्जेनीमें व्यतीत हुआ हो, यह संभव नहीं है कि वह अकारण ही अपने वंशगत धर्मको तिलांजलि देदे।
इस विषय अगाडीकी पंक्तियोंसे बिल्कुल स्पष्ट होजायगा कि वास्तवमै अशोक मूलमें जैनधर्मानुयायी था । उज्नेनमें निप्त समय वह थे, तब उनका विवाह विदिशागिरि (वेसनगर-भिलसाके निकट) के एक श्रेष्टीकी कन्यासे हुआ था। उनकी पट्टरानी क्षत्रीयवर्णकी थी और वह पाटलिपुत्रमें थी। मशोक जत्र राजा होकर पाटलीपुत्र पहुंचे तब उनके साथ उनके सब पुत्र-पुत्रियां भी वहां गये थे; किन्तु पट्टरानी आदिके अतिरिक्त उनकी अन्य स्त्रियां उज्जैनमें रहीं थीं । अशोकने इनका उल्लेख 'अवरोधन ' रूपमें किया है। इससे अनुमान होता है कि यह महिलाएं परदेमें रहतीं थीं। किन्तु परदेका भाव यहांपर इतना ही होता है कि वह जनसाधारणकी तरह आम तौरसे जहां-तहां मा जा नहीं सक्ती होंगी । राजमर्यादाका पालन करते हुये, उनके जाने-माने में रुकावट नहीं थीं। यदि यह बात न होती तो अशोककी रानियां महात्मालोगोंके दर्शन नहीं कर सक्ती थीं और न दान-दक्षिणादि देसक्ती थीं। बौद्धशास्त्र अशोकको प्रारम्भमें एक दुष्ट व्यक्ति प्रगट करते हैं और कहते हैं कि उनने अपने ९९ भाइयों की हत्या करके राज्यसिंहासन पर अधिकार जमाया था; किन्तु उनके शिलालेखोंसे उनके राज्यकालमें भाइयों और वहिनोंका नीवित रहना प्रमाणित है । अतः बौद्धोंका यह कथन कोरा कल्पित है । तब १-भाशो० पृ० १३ । २-अशोक० पृ० २३ व भाइ पृ० ६१ ।
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