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श्रुतकेवली भद्रबाहु और अन्य आचार्य । [ २०९.
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चेकगोलमें चन्द्रगिरि पर्व पर आये थे। इनसे भी प्राचीन शिला-लेख चंद्रगिरिपर नं० ३१ वाला है । उसमें भी इन दोनों महात्माओं का उल्लेख है।' इस दशामें भद्रबाहुनीका श्रवणबेलगोल में पहुंचना, कुछ अनोखा नहीं जंचता । हरिषेणज़ोने शायद दूसरे भद्रबाहूकी घटनाको इनसे जोड़ दिया होगा; क्योंकि प्रतिष्ठानपुर के द्वितीय भद्रबाहु का भाद्रपाद देशमें स्वर्गवास प्राप्त करना बिल्कुल संभव है । अतएव प्रथम भद्रबाहुनीका समाधिस्थान श्रवणबेलगोल मानना और उनके समय में ही प्रथम दशपूर्वी को रहते स्वीकार करना उचित है ।
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श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार श्री जम्बूस्वामीके उपरांत एक. प्रभव नामक महानुभाव उनके उत्तराधिकारी श्वेताम्बर पट्टावली | और प्रथम श्रुतकेवली हुये थे । यह वही चोर थे, जिनने अवुद्ध होकर श्री जम्बूस्वामीके साथ दीक्षा ग्रहण की थी । श्वेतांबरोंने प्रभवको जयपुर के राजाका पुत्र लिखा है, जो बचपन से ही उद्दण्ड था । राजाने उसकी उद्दण्डतासे दुखी होकर अपने देश से निकाल दिया था और वह राजगृहमें चौर्य कर्म करके जीवन व्यतीत करता था । ' दिगम्बर जैन ग्रन्थों में भी विद्युच्चर चोरको एक राजाका पुत्र लिखा है । किन्तु उसे वे जम्बूस्वामीका उत्तराधिकारी नहीं बताते हैं । समझमें नहीं आता कि जब दिगम्बर और श्वेताम्बर भेदरूप दीवालकी जड़ भद्रबाहु श्रुतके वली के समय में पड़ी थी, तब उनके पहिले हुये श्रुतकेवलियोंकी गणना में
१-प्रव०, पृ० ३३-३४ । २- परि०, पृ० ४२-५० वा०,
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वीर, भा० १ पृ० ३ । ३ - उपु०, पृ० ७०३
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