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संक्षिप्त जैन इतिहास |
जनताकी मनमानी मुराद पूरी हुई और वह अपने जाति अथवा कुलमदको भूल गई थी !
तब भारत में विश्वप्रेमी पुण्यधाराका अटूट प्रवाह हुआ ।
जनता गुणोंकी उपासक बन गई। ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्यत्वका उसे अभिमान
तव जाति या कुलकी मान्यता न होकर
ही शेष न रहा ! सब ही गुणोंको पाकर श्रेष्ट बनने की कोशिश करते थे | धन्य- कुमार सेठको देखिये; उनके गुणोंका आदर करके सम्राट श्रेणिकने अपनी पुत्रीका विवाह उनसे कर दिया था और उन्हें राज्य देकर अपने समान राज्याधिकारी बना दिया था । यही बात इनसे पहले
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गुणोंका आदर होता था ।
सेठ भविष्यदत्तके विषय में घटित हुईं थी । वह वैश्यपुत्र होकर भी राज्याधिकारी हुये थे । हस्तिनागपुर के राजसिंहासनपर आरूढ़ होकर उन्होंने प्रजाका पालन समुचित रीति से किया था | सेठ प्रीतिंकरको क्षत्री राजा जयसेनने आधा राज्य देकर राजा बनाया था | सारांशतः स्वतंत्र मन्वेषणके आधारसे विद्वानोंको यही कहना - पड़ा है कि " उस समय ऊपरके तीन वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य) - तो वास्तव में मूलमें एक ही थे; क्योंकि राजा, सरदार और विप्रादि तीसरे वैश्य वर्णके ही सदस्य थे; जिन्होंने अपनेको उच्च सामाजिक - पदपर स्थापित कर लिया था । वस्तुतः ऐसे परिवर्तन होना जरा कठिन थे, परन्तु ऐसे परिवर्तनोंका होना संभव था । गरीब मनुष्य राजा - सरदार (Nobles) बन सक्ते थे और फिर दोनों ही ब्राह्मण
१ - धन्यकुमार चरित्र देखो । २ - भविष्यदत्तचरिव । ३ - उपु० पर्व -७६, लो० ३४६-३४८