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तत्कालीन सभ्यता और परिस्थिति। [१३९
उस समयके भारतकी राजनेतिक सामाजिक और धार्मिक परिस्थितिका पर्ययलोचन कर लिया नावे । वप्त भारतकी तब जो दशा' थी वह स्पष्ट हो जायगी और उसके साथ जैनधर्म और जैन समानका जो स्वरूप उस समय था, वह भी प्रकट हो जायगा। मतः राजनैतिक विषय में तो उपरोक्त वर्णनसे पर्याप्त प्रकाश पड़ चुका है। उस समय भारत राजनैतिक रूपमें आनसे कहीं अधिक स्वाधीन और बलवान था। उसकी राष्ट्रीय दशा विशेष उन्नतशील और समृद्धिशाली थी। उस समय यहां एक समूचा राज्य नहीं था। भारत छोटेर राज्यों में विभक्त था, जिनकी संख्या सोलह थी। इनमें कोई तो परम्परीण सत्ताधिकारी राजाओंके अधिझारमें थे और किन्हींका शासन प्रजातंत्र प्रणालीके ढंगपर होता. था । प्रजातंत्र प्रणाली ऐसी उत्कृष्ट दशामें थी कि आनके उन्नत. शील प्रजातंत्र राज्यों के लिये वह एक अच्छा खासा आदर्श है। इस प्रकार उस समयकी राजनेतिक स्थिति थी। णिक महारान महामंडलेश्वर अर्थात एक हजार राजाओं के स्वामी थे।
निस देशकी राजनैतिक स्थिति सुचारु और समृद्धिशाली उस समयकी सामा- हो, उसका समान अवश्य ही उन्नतशील
जिक दशा। भवस्थामें होता है । ऐहिक सुख सम्पन्न दशामें व्यक्ति स्वातंत्र्य भात्महितकी वातोंकी ओर लोगों का ध्यान खतः जाता है। उस समयका भारतीय समान ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र वर्गामें विभक्त था। चाण्डाल आदिमी थे | भगवान
१-प्रेच. पृ० ३३९ ।