________________
१३८] संक्षिप्त जैन इतिहास । सिक दुःख हुआ था । सारांशतः उस समय भारत एवं विदेशोंमें भगवान महावीरके भक्त अनन्य राना और श्रेष्ठीपुत्र विद्यमान थे, जिनके द्वारा जैनधर्मकी प्रभावना विशेष होती थी। जैन संघमें श्रावक और श्राविकाओंको भी फिर चाहे वे व्रती हों या अवती, जो मुख्य स्थान मिला हुआ था; उप्तीके कारण जैनधर्मकी नींव भारतमें दृढ़ रही और घोरतम अत्याचारोंके सहते हुये भी वह सजीव है।
तत्कालीन सभ्यता और
परिस्थिति।
(ई० पू० ६००-७००) कोई भी देश हो, यदि उसके किसी विशेष कालकी सभ्यता भारतको तत्कालीन राज. और स्थितिका ज्ञान प्राप्त करना अभीष्ट
नैतिक अवस्था। हो, तो प्राकृत उस देशकी उस समयकी राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितिको नान लेना आवश्यक होता है। जहां उस देशकी इन सब दशाओंका सजीव चित्र हमारे नेत्रों के अगाड़ी खिंच गया; फिर ऐसी कौनसी बात बाकी रही कही जासक्ती है; जिससे तत्कालीन परिस्थितिका परिचय प्राप्त न हो ? भारतकी दशा भगवानके समय क्या थी ? उसकी सम्यता उस समय किस अवस्था पर थी? इन प्रश्नोंका यथार्थ उत्तर पानेके लिये श्रेष्ठ और निरापद मार्ग यही है कि
१-जैस्मा० पृ० २१ ।
mme
.--.
-
-