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श्री वीर संघ और अन्य राजा। [१३१ और वह मुक्त हो गया। मुनि वारिपेणका पवित्र जीवन धर्मसे शिथिल होते हुये मनुष्यों को पुनः उनके पूर्वपद और धर्मपर ले मानेके लिये आदर्शरूप है। श्रेणिक महाराजका एक अन्य पुत्र मेघकुमार भी जैन मुनि होगया था ।*
बौद्ध शास्त्रों में भी कतिपय जैन मुनियों का उल्लेख आया है; अन्य प्रसिद्ध किन्तु उनका पता मैनसाहित्यमें प्रायः नहीं मिलता जैन मुनि। है । बौद्धग्रंथ 'मज्झिमनिकाय' में एक चूकसकलोदायो नामक जैन मुनिको पंच व्रतों का प्रतिपादन करते हुये लिखा है। उसी ग्रन्थमें अन्यत्र निग्रंथ श्रमण दीवतपरली (दीर्वतपस्वी) का उल्लेख है। इन्होंने म० गौतमवुद्धसे तीन दन्डों ( मनदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड ) पर वार्तालाप किया था। इससे इनका एक प्रभावशाली मुनि होना प्रकट है। सुणखत्त नामक एक लिच्छविराजपुत्र भी प्रसिद्ध जैन मुनि थे। पहले यह बौद्ध थे; किन्तु उनसे सम्बन्ध त्यागकर यह जैन मुनि होगये थे। संभवतः जैन मुनिके कठिन जीवनसे भयभीत होकर वह फिर म बुद्धक पास पहुंच गये थे; छिन्तु म बुद्ध के निकट उनकी मनस्तुष्टि नहीं हुई थी, इमलिये उनने फिर पाटिकपुत्र नामक जैन मुनिके निकट जैन दीक्षा लेली थी।
श्रावस्ती के कुल पुत्र (Councillor's Son) मर्जुन भी एक समय जैन मुनि थे और अभयराजकुमारका जैन मुनि होना, जन • *-भम० पृ० १२४-१२६ ॥ १-मनि० मा० २ पृ०,३५-३६॥ २-१नि० भा० १५० ३७१-३८७१ ३-आजी० पृ०३५॥ ४-ममनु० पृ. २६६॥