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________________ १३२] संक्षिप्त जैन इतिहास । शास्त्रोंसे भी प्रकट है । किन्तु इन दोनों मुनियों के सम्बन्धमें कहा गया है कि वह बौद्ध होगये थे, सो ठीक नहीं है। यह जैन मान्यताके विरुद्ध है । सचमुच भगवान महावीरजीका प्रभाव म० बुद्ध और उनके शिष्योंपर वेढब पड़ा था। यहांतक कि वह जैन मुनियोंकी देखादेखी अपनी प्रतिष्टाके लिये नन्न भी रहने लगे थे क्योंकि उस समय नयना ( दिगम्बर भेष ) की मान्यता विशेष थी। वीरसंघका दूसरा अंग साध्वियों अथवा आर्यिकाओंका था । चन्दना आदि दिगम्बर जैन शास्त्रों में इनकी संख्या छत्तीसहजार आर्यिकायें। बताई गई है। यह विदुषी महिलायें केवल एक सफेद साड़ीको ग्रहण किये गर्मी और जाड़ेकी घोर परीपद सहन करती हुई अपना आत्मकल्याण करती थीं और लोगोंको सन्मार्गपर लगाती थीं। वह भी मुनियों के समान ही कठिन व्रत, संयम और भात्मतमाधिका अभ्यास करती थीं। सांसारिक प्रलोभन उनके लिये तुच्छ थे। उनके संसर्गसे वे अलग रहती थीं। इन मार्यिकाओंमें सर्वप्रमुख राजा चेटककी पुत्री राजकुमारी चंदना थी; जिसका परिचय पहिले लिखा जाचुका है । चन्दनाकी मामी यशस्वती माविका भी विशेष प्रख्यात् थी। चंदनाकी बहिन ज्येष्ठाने इन्हींसे निन दीक्षा ग्रहण की थी। इन आर्यिकाओंका त्यागमई जीवन पूर्ण पवित्रतामा आदर्श था।वे बड़ी ज्ञानवान और शास्त्रोंकी १-इंसेजै० पृ० ३६ । २-इंऐ० भा० ९ पृ० १६२ । ३-भम० पृ० १२० व हरि० पृ. ५७९ में २४००० वताई है। उपु० पृ० ६१६ में ३६००० है। -
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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