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विद्वानों के मत
१- भाषा में हिन्दू धर्म की पुस्तकों के सुप्रसिद्ध अनु. पाठक तथा रचयिता मुमिद्ध विद्वान श्री सुत्रनलाल वमन एम. १० ने अपने उ मामिक पत्र के जनवरी सन १९११ के बा में 'महावीर स्वामी का पवित्र जीवन' शीर्षक लेख में लिखा है:
गये दोनों जहान नज़र से गुज़र ।
तेरे हुस्न का कोई पशर न मिला। ( भावार्थ-पीछ का तथा यह (वनमान ) दोनों काल हमाग चला गया, परन्तु हे प्रभो । मेरे जैमा पवित्र बाज नक हमको कोई भी न मिला ।)
"ये जैनियों के प्राचार्य गुरु थे। पाक दिल, पाक ख्याल, मुजम्सम पाकी* व पाकी जजी थे। x x x » उन्होंने नमार के पाणी मात्र की भलाई के लिये सवका त्याग किया x x x x जानवरों का खून बहाना रोकने के लिये अपनी जिन्दगा का म्वन कर दिया । ये अहिमा की परम ज्योतिवाली मूर्ति है। वेदों की अति "अहिंसा परमो धर्म:" कुछ इन्हीं पवित्र महान पुरुषों के जीवन में अमली सूरत इख्तियार करती हुई नजर आती है।" x x x x इनमें त्याग था. इनमें वैराग्य था, इनमें धर्म
अद्वितीय।