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श्रावक तथा साधु
जैन समाज के दो अङ्ग है ( १ ) श्रावक ( २ ) साधु ।
उनके कर्तव्यों के बारे में जैनाचार्यों ने प्रावक धर्म तथा माधु धर्म नामक दो शीक देकर काफी विवेचन किया है। श्वेतांबर नया दिगम्बर साहित्य भण्डार में इनपर काफी पुस्तके अपने-अपने मन को पुष्ट करने के लिये स्वतन्त्र रूप से लिग्यने में आई हैं। •ितु दिगंबर-मंप्रदाय की रखकरगड श्रावकाचार' शीर्षक पुस्तक ग्वाम तौर से श्रावकों के लिये मननीय है।
माधु-धम पर हम यहाँ पर विशेष कुछ लिम्यना नहीं चाहते। कारण जन धम-प्रकाश पुम्नक श्रावकों के ही लोभाय नैयार करने में पाई है: क्योंकि माधों के लिय संमार में कोई वाम कम करने को नहीं रहना। श्रावक धर्म पालने के लिये मुख्य बारह त्रत बतलाए गए हैं।
(:) स्थूल प्राणातिपत विग्मण (२) स्थूल मृपावाद विरमण (३) स्थूल अदत्तादान विरमग (१) स्थूल मेथुन विरमण (५) परिग्रह परिणाम (६) दिग्वन (७) भोगापमांग परिमाण (5) अनथ दण्ड विपति (६) मामायिक (१०) देशावकाशिक (११) पोषध (१२) अतिथि संविभाग।