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________________ ( १८ (५१) यति मरे बाद लड्डु, लाहते हो लिखा है, सो असत्य है, हमने तो ऐसा सुना भी नहीं है, कदापि तुमारे ढूंढक करते हों, और से याद आगया हो ऐसे भासता है * इस (५२) यति के मरेबाद थूभ करानेहो - यह श्रावक की करणीह, गुरु भक्ति निमित्त करना यह श्रावक का धर्म है; श्रीआवश्यक, आचार दिनकरादि सूत्रों में लिखा है और इसमें साधुका उपदेश है, आदेश नहीं ॥ ऊपर मूजिब (५२) प्रश्न जेठमलनें लिखे हैं, सो महा मिथ्यात्व के उदयसे लिखे हैं, परंतु हमने इनके यथार्थ उत्तर शास्त्रानुसार दीये हैं, सो सुज्ञ पुरुषों ने ध्यान देकर वांच लेने ॥ अब अज्ञानी ढूंढिये शास्त्रों के आधार बिना कितनेक मिथ्या आचार सेवते हैं तिनकावर्णन प्रश्नों की रीति से करते हैं । (१) सारादिन मुंह बांधे फिरते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? (२) बैठकी पूंछ जैसा लंबा रजोहरण लटका कर चलते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? (३) भीलों के समान गिलती बांधते हो, सो किस शा० ? (४) चेला चेली मोल का लेते हो, सो किस शा० ? (५) जूठे वरतनों का धोवण समूच्छिम मनुष्योत्पत्ति युक्त लेते हो और पीते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? (६) पूज्य पदवी की चादर ओढते हो, सो किस शा ० ? ॥ (७) पेशाब से गुदा धोते हो, सो किस शा० ? #सुनने में आया है कि अमृतसर में एक ढूंढनी के मरे बाद सेवकों ने पिंड भराये थे तथा पंजाब में जब किसी ढूंढीये या ढूंढनी के मरने पर लोक एकत्र होते हैं तो खूब मिठाईयों पर हाथ फेरते हैं ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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