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________________ भावार्थ-तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त, रविजोग आदि जोग, ऐसे प्र. शस्त दिनमें,आत्माको पापसे वोसिरावे,सो जिनभवन आदि प्रधान क्षेत्रमें गुरुको वंदना करके कहे-प्रसाद करके आप हम को पांच महा व्रत और छठा रात्रि भोजन विरमण आरोपण करो (देओ)॥ (४१) पदीकचाक वांधते हो लिखा है, सो मिथ्या है। (४२) वंदना करवाते हो,वंदना करनीसोभावकोंका मुख्यधर्म है। (४३) लोगोंके शिर पर रजोहरण फिराते हो, यह काम हमारे संवेगी मुनि नहीं करते हैं, परंतु तुमारे रिख यह काम करते हैं, सो प्रथम लिख आए हैं। (१४)गांठमें गरथ रखते हो अर्थात् धन रखतेहो,यह महा असत्य है, इस तरह लिखने से जेठेने तेरखें पापस्थानक का बंधन किया है। (४५) डंडासण रखते हो लिखा, सो ठीक है, श्रीमहानिशीथ सूत्र में कहा है * ___ (१६) स्त्री का संघटा करते हो लिखा है, सो,मिथ्या है ॥ " (४७) पगों तक नीची पछेबड़ी ओढते हो लिखा है,सोमिथ्या है,क्योंकि संवेगी मुनि ऐसे नहीं ओढते हैं,परन्तु तमारेरिख पगकी पानी (अड्डियों) तक लंबा घघरे जैसा चोलपट्टा पहिरते हैं। (४८) सरिमंत्र लेते हो लिखा है,सो गणधर महाराज की परंपराय से है, इस वास्ते सत्य है। , (४९) कपड़े धुलवाते हो लिखा है, सो असत्य है ।। (५०) आंबिल का ओलि कराते हो लिखा है,सो सत्य है,महा उत्तम है, श्रीपालचरित्रादि शास्त्रों में कहा है, और इस से नव पड़ का आराधन होता है, यावत् मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है । "श्रीव्यवहार सूत्र भाष्यादिकामें भी डंडास ए रखना लिखा है।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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