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________________ सूत्रोंके पढ़नेकीआज्ञाभगवंतने नहीं दी है, तोभी जोश्रावक पढ़ते हैं वे भगवंतकी आज्ञाका भंग करते हैं, और आज्ञा भंग करनेवाला यावत् अनंत संसारी होवे ऐसे सूत्रोंमें बहुत ठिकाने कहा है, और ढूंढिये भी इस बातकों मान्य करते हैं; जेठा लिखनाहै कि"श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमें श्रावकको 'कोविद' , कहा है,तो सूत्र पढे. विना कोविद कसे कहा जावे ?" - उत्तर-कोविद का अर्थ 'चतुर-समझवाला' ऐसा होता है तो श्रावक जिनप्रवचन में चतुर होता है, परंतु इससे कुछ सूत्र पढे हुए नहीं सिद्ध होते हैं जेकर सूत्र पढे होवे तो अधित" क्यों नहीं कहा ? जेठा मंदमति लिखता है कि "श्रीभगवती सूत्रमें केवली प्रमुख दशके समीप केवली प्ररूप्या धर्म सुनके केवलज्ञान प्राप्त करे उनको 'सुच्चा केवली' केवली कहीये ऐसे कहा है उन दश बोलोंमें श्रावक श्राविका भी कहे हैं तोउनके मुखसे केवली प्ररूप्या धर्म सने सो सिद्धांत या अन्य कुछहोगा?इसवास्तसिद्धांत पढनेकी आज्ञासबको मालूमहोती है"उत्तर-सिद्धांत वांचके सुनाना उसका नामही फकत केवला प्ररूप्या धर्म नहीं है परंतु जो भावार्थ केवली भगवंतने प्ररूप्या है सो भावार्थ कहना उसका नाम भी केवली प्ररूप्या धर्मही कहलाता है इसवास्ते जेठेकी करी कल्पना असत्य है तथा श्रीनिशीथ सूत्र में कहा है किसे भिक्खुअण्णउत्थियंवा गारत्थियंवावाए वायंतंवा साइजजडू तस्सणं चउमासियं ॥ - अर्थ-जो कोई साधु अन्य तीर्थ को वांचना देवे,तथा गृहस्थी को वांचना देवे अथवा वांचना देतां साहाय्य देवे,उसको चौमासी प्रायश्चित आवे ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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