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________________ ( २५० ) जेठा मूढमति लिखता है कि पांचोंही आश्रवका फल सरीखा है" तब तो जेठा प्रमुख सर्व ढूंढक जैसे कारणसे नदी उतरते हैं, मेघ वर्षते में लघुनीति परिठवते हैं, और स्थंडिल जाते हैं, प्रतिलेखनाप्रतिक्रमण करते वायुकायकी हिंसा करते हैं, ऐसेही कारण से मैथुन भी सेवते होंगे, परिग्रह भी रखते होंगे, मूली गाजरभी खालेते होंगे, तथा जैसा ढूंढकोंका श्रद्धान है, ऐसाही इनके श्रावकोंका भी होगा, तवतो तिनके श्रावक ढूंढिये भी जैसा -पाप अपनी स्त्रीसे मैथुन सेवनेसे मानते होवेंगे, वैसाही पाप अपनी माता, बहिन, बेटीसे मैथुन सेवनेसे मानते होवेंगे ? "स्त्रीत्वाविशेषात्". स्त्री पणेमें विशेष न होने से, मूर्ख जेठेका “पांचों ही आश्रवका फल सरीखा है"यह लिखना अज्ञानताका और एकांत पक्षका है,क्योंकि वह जिनमार्गकी स्याद्वादशैलिको समझाही नहीं है जेठा लिखता है, कि "तीर्थकर भी झूठ बोलते हैं ऐसा जैन धर्मी कहते है" उत्तर-यह लिखना विलकुल असत्य है, क्योकि .तीर्थकर असत्य बोले ऐसा कोई भी जैनधर्मी नहीं कहता है,तीर्थंकर कभी भी असत्य न बोले ऐसा निश्चय है, तोभी इसतरह जेठा तीर्थकर भगवंतके वास्ते भी कलंकित वचन लिखिता है तो इससे यही निश्चय होता है कि वह महामिथ्याष्टि'था॥ ___ श्रीपन्नवणासूत्रमें ग्यारमें पदे-सत्य, असत्य,सत्यामृषा और असत्यामृषा यह चारों भाषा उपयोगयुक्त बोलतेको आराधक कहा है इस बाबत जेठा लिखता है कि "शासनका उड्डाह होता होवे, चौथा आश्रव सेव्या होवे तो झूठ बोले ऐसे जैनधर्मी कहते हैं" उत्तर-यह लेख असत्य है, क्योंकि शासनका उड्डाह होता होवे तब तो मुनि महाराजा भी असत्य बोले, ऐसा पन्नवणा सूत्र के
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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