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________________ । (१४.) की भी कुछ जरूरत नहीं है। परंतु पूर्वोक्त दुष्ट पुरुषों के निवारणकी तो अवश्य जरूरतहै। जेठमल सरीखे बेअकल रिखोंके ऐसे लेख तथा उपदेशसे यह तो निश्चय होताहै कि उनकी आर्या अर्थात् ढूंढिनी साध्वी का कोई शील खंडन करे अथवा ढूंढिये साधुओं को कोई प्रहार करे यावत् मरणांतकष्ट देवे तो भी अकलके दुश्मन ढंढियेश्रावक उस कार्य करने वाले को अपराधी न गिनें, शिक्षा न करें,और उसका किसी प्रकार निवारणभी न करें, इससे ढूंढिये तेरापंथी भीखमके भाई हैं ऐसा जेठमलही सिद्ध कर देता है क्योंकि उसकी श्रद्धा उन जैसी ही है। यहां सत्यके खातर मालूम करना चाहते हैं कि कितनेक ढूंढियों की श्रद्धा पूर्वोक्त जेठे सहश नहीं है, क्योंकि वो तो धर्मके प्रत्यनीकका निवारण करना चाहिये ऐसे समझते हैं। इसवास्ते जेठेकी श्रद्धा समस्त जैनशास्त्रोंसे विपरीतहै इतना ही नहीं बलकि ढूंढियों से भी विपरीत है , इस बाबत जेठेने लिखा है "जो ऐसी भक्ति करनेका जिन शासनमें कहा होवे तो दो साधुओंको जालने वाला गोशाला जीता क्यों जावें?" उत्तर-यह मूढ इतनाभी नहीं समझता कि उस समय वीर भगवान् प्रत्यक्ष विराजते थे, और उन्होंने भावी भाव ऐसाही देखा था।इसवास्ते ऐसीऐसी कतकें करना सो महा मिथ्यादृष्टि अनंत संसारी का काम है। इस प्रश्नोत्तरके अंतमें जेठेने श्रीआचारांगसूत्रका पाठालखाह जिसका भावार्थ यहहै कि साधुको कोई उपसर्ग करे तो साधु उस का घात न चिंते । सो यह बात तो हमभी मंजूर करते हैं । क्योंकि पूर्वोक्त पाठमें कहे मूजिब हरिकेशी मनिने अपने मनमें ब्राह्मणों
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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