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(ife ) और गुर्वादिक अपराधिका निवारण करना सो वैयावच्च है; सोई श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमें श्रीहरिकेशी मुनिने कहा है तथाहि--
पव्विं च इरिहं च अणागयं च मणप्पदोसो. न में अस्थि कोइाजक्खा हुवेयावडियं करेंति
तम्हा हु एए निहया कुमारा॥ ३१ ॥ ... इस काव्यके तीसरे तथा चौथे पादमें हरिकेशीमुनिने कहाहै
कि यक्ष मेरी वेयावच्च करता है, उसने मेरी वेयावच्च के वास्ते . कुमारों को हणा है ॥. -. . : : : * इस बाबत जेठमल लिखता है कि "हरिकेशीमुनि छप्रस्थ
चारभाषाका बोलने वालाथा उसका वचन प्रमाण नहीं ऐसे वचन पुण्यहीन मियादृष्टिके विनाअन्य कौन लिखे. या बोले ? बड़ा आश्चर्य है कि सूत्रकार जिसकी महिमा और गुण वर्णन-करतेहैं, जिसको पांच समिति और तीन गुप्ति सहित लिखते हैं, ऐसे महामुनिका वचन प्रमाण नहीं ऐसे जेठा लिखताहै ! परंतु ऐसे लेखसे जेठमलकुमतिका वचन किसी भी मार्गानुसारीको मान्यः करने योग्य नहींहै ऐसे सिद्ध होता है। . : " . - जेठमल लिखता है कि "गुरुको वाधाकारी जू,लीखे,मांगण आदि बहुत सुक्ष्म जीवभी होतेहै तो उनका भी निराकरण करना चोहिये" उत्तर-अकल जेठे का यह लिखना मिथ्या है, क्योंकि वो जीव कुछ द्वेषबुद्धिसे साधुको असांता पैदा नहीं करते हैं, परंत
उनका जाति स्वभावही ऐसा है, और इससे गुरु महाराजको कछं i. विशेष असाता होनेका भी संभव नहींहै । इसवास्ते इनकनिवारण