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(२३०१) क्रोड़ों रुपैयेकी लागतके जिनमंदिर जिनकी शोभा अवर्णनीय है यद्यपि विद्यमान हैं । तोभी मंदमति जेठमल ढूंढकने लिखा है कि "किसी श्रावकने जिनप्रतिमा पूजी नहीं है तो इससे यही मालूम होता है कि उसके हृदय चक्षुतो नहीं थे परंतु द्रव्यका भी अभाव ही था ! क्योंकि इसी कारण से उसने पूर्वोक्त सूत्रपाठ अपनी दृष्टि से देखे नहीं होवेंगे।॥
॥ इति ॥
(२७) सावधकरणी बाबत - सत्ताइसमें प्रश्नोत्तरमें जेठमल लिखता है कि "सावधकरणी में जिनाज्ञा नहीं है" यह लिखाण एकांत होनेसे जेठमलने अज्ञानताके कारण किया होवे ऐसे मालूम होता है, क्योंकि सावध निर वद्यकी उसको खबर ही नहीं थी ऐसे उसके इस प्रश्नोत्तरमें लिखे २४ बोलोंसे सिद्ध होता है । जेठमल जिस २ कार्यमें हिंसा होती होवे उन सर्व कार्यों को सावधकरणीमें गिनता है परंतु सो झूठ है। क्योंकि जिनपूजादि कितनेक कार्यों में स्वरूपसे तो हिंसा है परतु जिनाज्ञानुसार होनेसे अनुबंधे दया ही है परंतु अभव्य, जम लिमती
औरदिये प्रमुख जो दया पालते है,सो स्वरूपे दया है परंतु जिनाज्ञा बाहिर होनेसे अनुबंधे तो हिंसा ही है इसवास्ते कितनेक धर्म कार्यों में स्वरूपे हिंसा और अनुबंधे दया है और तिसका फलभी दयाका ही होता है तथा ऐसे कार्य में जिनेश्वर भगवंतने आज्ञाभी दी हैं, जिनमेंसे कितनेक बोल दृष्टांत तरीके लिखते हैं।
५ (१) श्रीआचारांगसूत्रके दूसरे श्रुतस्कंधके ईर्या अध्ययनमें लिखा है कि साधु खाडेमें पड़जावेतो घांस वेलडी तथा वृक्षको पकड कर बाहिरनिकल आवे ॥ .. . . . . . ..