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- (२) इसी सूत्रमें लिखा है कि साधु खंड शर्कराके बदले लूण ले आया होवे तो वो खाजावे,अपने आप न खाया जावे तो सांभोगिक को बांटे देवे॥
(३) इसी सूत्र में लिखा है कि मार्गमें नदी आवे तो साधु इस तरह उतरे॥
() इसी सूत्रमें कहा है कि साधु मृगपृच्छामें झूठ बोले।
(५) श्रीसूयगडांगसूत्रके नवमें अध्ययनमें कहाहै कि मृगपृच्छा के विना साधु झूठ न बोले, अर्थात् मृगपृच्छामें बोले ॥
(६) श्रीठाणांगसूत्रके पांचौ ठाणे में पांचकारणे साधु साध्वी को पकडलेवे ऐसे कहा है, तिनमें नदी में बहती साध्वी को साधु बाहिर निकाले ऐसे कहा है ॥
(७) श्रीभगवतीसूत्रमें कहा है कि श्रावक साधुको असुझता और सचित्त चार प्रकारका आहार देवे तो अल्य पाप और बहुत निर्जरा करे॥
(८) श्रीउवाइसूत्र में कहा है कि साधु शिष्यकी परीक्षावास्ते दोष लगावे ॥
(९) श्रीउत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि साधु पडिलेहणा करे उसमें अवश्य वायुकायकी हिंसा होती है।
(१०) श्रीबृहत्कल्पसूत्र में चरबीका लेप करना कहा है।
(११) इसी सूत्रमें कारणे साध्वीको पकडना कहा है। ' इत्यादि कितनेही कार्य जिनको एकांत पक्षी होनेसे जेठमल ढूंढक सावध गिनता है परंतु इनमें भगवंतकी आज्ञा है, इस वास्ते कर्मका वंधन नहीं है। श्रीआचारांगसूत्रके चौथे अध्ययनके दुसरे उद्देश में कहा है कि देखने में आश्रवका कारण है परंतु, शुद्ध