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________________ ( २२९ ) उनकी आराधना निमित्त साधु तथा श्रावक कायोत्सर्ग करे। (२७) श्रीव्यवहारसूत्र में प्रथम उद्देशे जिनप्रतिमाके आगे आलोयणा करनी कही है। (२८) श्रीमहानिशीथसूत्रमें जिनमंदिर बनवावे तो श्रावक उत्कृष्टा घारमें देवलोक पर्यत जावे ऐसे कहा है । (२९) श्रीमहाकल्पसूत्रमें जिनमंदिरमें साधु श्रावक वंदना करनेको न जावे तो प्रायश्चित्त लिखा है। (३०) श्रीजीतकल्पसूत्र में भी प्रायश्चित्त लिखा है। (३१) श्रीप्रथमानुयोगमें अनेक श्रावक श्राविकायोंने जिनमंदिर बनवाए तथा पूजा करी ऐसा अधिकार है। इत्यादि सैकड़ो ठिकाने जिनप्रतिमाकी पूजा करनेका तथा जिनमंदिर बनवाने वगैरह का खुलासा अधिकार है । और सर्व सूत्र देखके सामान्यपणे विचार करने से भीमालूम होता है कि चौथे आरेमें जितने जिनमंदिर थे उतने आजकल नहीं हैं, क्योंकि सूत्रों में जहां जहां श्रावकोंका अधिकार है वहां वहां “पहायाकयबलिकम्मा" अर्थात् स्नान करके देवपूजा करी ऐसा प्रत्यक्ष पाठ है। इससे सर्व श्रावकोंके घर जिनमंदिर थे और वे निरंतर पूजा करते थे ऐसे सिद्ध होता है। तथा दशपूर्वधारीके श्रावक संप्रतिराजाने सवालाख जिनमंदिर और सवाकोड जिनबिंब बनवाए हैं जिनमें से हजारों जिनमंदिर और जिनप्रतिमा अद्यापि पर्यंत विद्यमान हैं रतलाम,नाडोल आदि नगरोंमें तथा शत्रुजय गिरनारादि तिों में बहुत ठिकाने संप्रतिराजाके बनवाए जिनमंदिर दृष्टिगोचर होते हैं, और भी अनेक जिनमंदिर हजारों वर्षों के बने हुए दीखलाइ देते हैं, तथा आबुजी ऊपर विमलचंद्र तथा वस्तुपालतेजपालके बनवाए
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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