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( २२४ ) त्रिविध प्राणातिपातका पच्चक्खाण करें ऐसे कहा,और समवायांग तथा दशाश्रुतस्कंधमें नदी उतरनी कही यह क्या ?
(१४) श्रीदशवैकालिकमें साधुको लूण प्रमुख अनाचीर्ण कहा, और आचारांगसूत्रके द्वितीय श्रुतस्कंधके पहिले अध्ययनके दशमें उद्देसमें साधुको लुण किसीने विहराया होवे तो वो लूण साधु आप खालेवे, अथवा सांभोगिकको बांटके देखें ऐसे कहा, यह क्या ?
(१५) श्रीभगवतीसूत्र में नींव तीखा कहा, और उत्तराध्ययन सूत्रमें कौडा कहा यह क्या ? . (१६) श्रीज्ञातासत्रमें श्रीमल्लिनाथजीने(६०८)के साथ दीक्षा ली ऐसे कहा, और श्रीठाणांगसूत्रमें ६ पुरुष साथ दीक्षा ली ऐसे कहा यह क्या ? ॥
(१७) श्रीठाणांगसूत्रमें श्रीमल्लिनाथजीके साथ ६ मित्रोंन दीक्षा ली ऐसे कहा,और श्रीज्ञातासूत्रमें श्रीमल्लिनाथजी को केवल ज्ञान होए बाद ६ मित्रोंने दीक्षा ली ऐसे कहा यह क्या
(१८) श्रीसूयगडांगसूत्रमें कहा है कि साधु आधार्मि आहार लेता.हुआ कर्मों से लिपायमान होवे भी, और नहीं भी होवे, इस तरह एकही गाथामें एक दूसरेका प्रतिपक्षी ऐसे दो प्रकारका कथन है, यह क्या ?
ऊपर मूजिब सूत्रोंमें भी बहुत विरोध हैं परंतु ग्रंथ अधिक हो जाने केभयसे नहीं लिखे हैं तोभी जिनको विशेष देखने की इच्छा होवे उन्होंने श्रीमद्यशोविजयोपाध्यायकृत वीरस्तुति रूप हुंडीके स्तवनका पंडित श्रीपद्मविजयजी का करा बालावबोध देख लेना। ... जेकर ढूंढिये बत्तीससूत्रोंको परस्पर अविरोधी जानके मान्य