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( २२३ ) (३) श्रीरायपसेणीसूत्रमें श्रीकेशीकुमारको चार ज्ञान कहे हैं, और श्रीउत्तराध्ययनसूत्र में अवधिज्ञानी कहासो कैसे?
(४) श्रीभगवतीसूत्र में श्रावक होवे सो त्रिविध त्रिविध कमा दानका पञ्चक्वाण करे ऐसे कहा, और श्रीउपासकदशांगसूत्रमें आनंदश्रावकने हल चलाने खुले रखे यह क्या ? |
(५) तथा कुम्हार श्रावकने आवे चढाने खुले रखे।
(६) श्रीपन्नवणासूत्रमें वेदनीकर्मकी जघन्य स्थिति बारह मुहर्तकी कही,और उत्तराध्ययनमें अंतमुहूर्त्तकी कही।
(७) श्रीउत्तराध्ययनमें 'लसन' अनंतकाय कहा, और श्रीपन्नवणाजीमें प्रत्येक कहा॥
(८) श्रीपन्नवणासूत्रमें चारों भाषा बोलने वालेको आराधक कहा, और श्रीदशवैकालिकसूत्रमें दो ही भाषा बोलनी कहीं॥
(९) श्रीउत्तराध्ययनमें रोगके होये साधु दवाई न करे ऐसे कहा, और श्रीभगवतीसूत्र में प्रभुने बीजोरापाक दवाई के निमित्त लिया ऐसे कहा॥
(१०) श्रीपन्नवणाजीमें अठारवें कायस्थिति पदमें स्त्रीवेदकी कायस्थिति पांच प्रकारे कही तो सर्वज्ञके मतमें पांच बातें क्या ?
(११) श्रीठाणांगसूत्र में साधुको राजपिंड न कल्पे ऐसे कहा, और अंतगडसूत्र में श्रीगौतमस्वामीने श्रीदेवीके घरमें आहार लिया ऐसे कहा ॥
(१२) श्रीठागांगसूत्र में पांच महानदी उतरनी ना कही,और दूसरे लगते ही सूत्रमें हां कही यह क्या ? . (१३) श्रीदशवेकालिक तथा आचारांगसूत्रमें साधु त्रिविध