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________________ कही है, जैनशास्त्रोंमें तो तीर्थंकरकी चौरासी आशातना कही है। और उसी मूजिव जिनप्रतिमा की चौरासी आशातना है ॥ , (१५) "उपवास (बत) में पानी विना अन्य व्यके खानेका निषेधहे और प्रकरणमें अणाहार वस्तु खानी कही है।" उत्तरजेठमल आहार अणाहारके स्वरूपका जानकार मालूम नहीं होता है क्योंकि व्रतमें तो आहारका त्याग है, अणाहार का नहीं तथा क्या क्या वस्तु अणाहार है, किस रीति से और किस कारण से वर्तनी चाहिये, इसकीभी जेठमल को खबर नहीं थी ऐसे मालूम होता है दंडिये व्रतमें पानी विनाअन्य द्रव्यके खानेकी मनाई समझते हैं तो कितनेक ढूंढिये साधु तपस्या नाम धरायके अधरिडका तथा गोहड़ी मठे सरीखी छास (लस्सी)प्रमुख अशनाहारका भक्षण करते हैं सो किसशास्त्रानुसार? । ... (४६) "सिद्धांतमें भगवंतको “सयंसंबद्धाणं" कहा और कल्पसूत्रमें पाठशालमें पढ़ने वास्ते भेजे ऐसे कहाहै" उत्तरभगवंत तो "सयंसंबुद्धाणं अर्थात् स्वयंबुद्ध ही हैं,वो किसीके पास पढ़े नहीं हैं, परंतु प्रभुके माता पिताने मोह करके पाठाशालामें भेज तो वहांभी उलटे पाठशालाके उस्ताद के संशय मिटाके उसको पढ़ा आए हैं ऐसे शस्त्रोंमें खुलासा कथन है तथापि जेठमलने ऐसे खोटे विरोध लिखके अपनी मूर्वता जाहिर करीहै। (४७)"सूत्रमें हाडकी असझाई कहींहै और प्रकरणमें हाडके स्थापनाचार्य स्थापने कहे" उत्तर-असझाई पंचेंद्रीके हाडकी है अन्यकी नहीं,जैसेशंख हाडहै तोभीवाजिंत्रोंमें मुख्य गिना जाताहै, और सूत्रमें बहुत जगह यह बात है,तथा जेकर ढूंढिये सर्व हाडकी
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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