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( २१४ ) (४१) "सबसे जैसे मांसका निषेध है तैसे मदिराकाभी निषेध है और श्रीज्ञातासूत्रमें शेलकराजऋषिने मद्यपान किया ऐसे कहते हो” उत्तर-जैनमतके मुनि पूर्वोक्त अर्थ करते हैं सो सत्यही है, क्योंकि शेलकराजर्षिके तीन वक्त मद्यपान करनेका अधिकार सूत्र पाठमें है तो तिस अर्थमेंकुछभी बाधक नहीं है क्योंकि सूत्रकारनेभी उसवक्तशेलकराजर्षिको पासथ्था,उसन्ना और संसक्त कहा है,इस वास्ते सच्चे अर्थको झूठा अर्थ कहना सो मिथ्यात्वीका लक्षण है ॥
(४२) "श्रीभगवतीसूत्र में कहा कि मनुष्यका जन्म एकसाथ एकयोनिसेउत्कृष्टा पृथक्त्त्व जीवका होवे और प्रकरणमें सगर चक्रवर्तीके साठहजार पुत्र एकसाथ जन्मे कहे हैं" उत्तर-श्रीभगवतीसूत्रमें जो कथन है सो स्वभाविक है सगरचक्रवर्ती के पुत्र जो एकसाथ जन्मे हैं सो देवकारणसे जन्मे हैं।। । .. (४३) “सूत्रमें कहा है कि शाश्वती पृथिवीका दल उतरे नहीं और प्रकरणमें कहा कि सगरचक्रवर्तीकेपुत्रोंने शाश्वतादल तोडा" उत्तर-सगरचक्रवर्तीके पुत्र श्रीअष्टापद पर्वतोपरि यात्रा निमित्ते गये थे, उन्होंने तीर्थरक्षा निमित्ते चारों तर्फ खाई खोदने वास्ते विचार करा, इससे तिनके पिता सगरचक्रवर्ती के दिये दंडरत्नसे खाई खोदी और शाश्वता दल तोडा; परंतु दंडरत्नके अधिष्टायक एक हजार देवते हैं । ओर देवशक्ति अगाध है इसवास्ते प्रकरणमें कही बात सत्य है ॥ . . । (४४) "सूत्र में तीर्थंकरकी तेतीस आशातनाटालनीकही और प्रकरणमें जिनप्रतिमाकी चौरासी आशातना कही ह” उत्तरतीर्थकरकी तेतीस आशातना जैनमतके किसीभी शास्त्रमें नहीं