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( २ ) असझाइ गिनते हैं तो उनकी श्राविका हाथमें चूड़ा पहिरके ढूंढ़िये साधुओंके पास कथा वार्ता सुननेको आती हैं सोवो चूड़ा भी हाथी दांत हाथीके हाड़का ही होता है इसवास्ते ढूंढक साधुको चाहिये कि अपने ढंढक श्रावकोंकी औरतोंको हाथमें से चूड़ा उतारे बादही अपने पास आने देवें!
(४८)"श्रीपन्नवणाजीमें आठसौ योजनकी पोलमें वाणव्यंतर रहते हैं ऐसे कहा और प्रकरणमें अस्सी(८०)योजनकी पोल अन्य कही" उत्तर-श्रीपन्नवणासूत्रमें समुच्चय व्यंतरका स्थान कहा है और ग्रंथों में विशेश खुलासा करा है।
(४९) "जैनमार्गी जीव नरकमें जाने के नामसे भी डरता है, ऐसे सूत्रमें कहा है,और प्रकरणमें कोणिक राजाने सातमी नरकमें जाने वास्ते महापापके कार्य किये ऐसे कहो'उत्तर-जैनमार्गी जीव नरकमें जानेके नामसे भी डरता है सो बात सामान्य है एकांतनहीं
और कोणिकके प्रश्न करनेसे भगवंतने तिसको छठी नरकमें जावेगा ऐसे कहा तब छठी नरकमें तो चक्रवर्तीका स्त्रीरत्न जाता है ऐसे समझके छठी से सातमीमें जाना अपने मन में अच्छा मानके तिस
* यह हास्यरस सयुक्त लेख गुजरात काठीयावाड़ मारवाडादि देशों के टूटिंयों पाश्री है, क्योंकि उस देशमें रंडी विधवा दो सिवाय कोई भी औरत कबीभी हाथ चडे. से खाली नहीं रखती है, कितनाही सोग होवे परंतु सोहागका चूडा तो जरूर ही हाथमे रहता है, औरतों के हाथ से चूडा तो पति के परलोको सधाये वादही उतरता है तो दंढिये साधको सोहागन औरतों को अपने व्याख्यानादिमें कनीभी नहीं पाने देना चाहिये ! और पजाबदेशकी औरतों के भो नाथा कान वगैरह के कितनेही गहने हाड़के होते हैं, हँढिय श्रावक श्राविकायोंके कोट कमीज फतुझ्या वगैरह को गुदा भी प्रायः हाडके ही लगे हुए होते हैं, इसवास्ते उनको भी पास नहीं बैठने देना चाहिये ! वारे भाई ढूंढ़ियो !! सत्य है । विनागुरुगमके यथार्थ बोध कहां से होवे !