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________________ ( २१२ ) ऐसे कहा और श्रीमहापच्चरखाण पयन्नेमें अनंतीवार चक्रवर्ती होवे ऐसे कहा" उत्तर-श्रीमहापच्चरखाण पयन्लेमें तो ऐसे कहा है कि जीवने इंद्रपणा पाया,चक्रवर्तीपणा पाया,और उत्तम भोग अनंतवार पाये तोभी जीव तृप्त नहीं हुआ, परंतु तिस पाठमें चक्रवर्तीपणा अनंतवार पाया ऐसे नहीं कहा है। इससे मालूम होता है कि जेठमलको शास्त्रार्थका बोध ही नहीं था। (३६) "श्रीभगवतीसूत्र में कहा है कि केवलीको हंसना,रमना, सोना, नाचना इत्यादि मोहनीकर्मका उदय न होवे और प्रकरणमें कपिल केवलीने चोरोंके आगे नाटक किया ऐसे कहा" उत्तर-कपिल केवलीने ध्रुपद छंदप्रमुख कहके चोर प्रतिबोधे और तालसंयुक्त छंद कहे तिसका नाम नाटक है, परंतु कपिलकेवली नाचे नहीं हैं। (३७) "श्रीदशबैकालिकासूत्र में साधुको वेश्याक पाड़े (महल्ले) जाना निषेधकियाऔर प्रकरण में स्थूलभद्रने वेश्याके घरमें चौमासा करा एसे कहा" उत्तर-स्थूलभद्रके गुरु चौदहपूर्वी थे इसवास्तेस्थूलभद्र आगमव्यवहारी गुरुकी आज्ञा लेकर वेश्याके घरमें चौमासा रहे थे, और दशवकालिकसूत्र तो सूत्रव्यवहारियोंके वास्ते हैं, इसवास्ते पूर्वोक्तबानमें कोई भी विरोध नहीं है ॥ (३८) "श्रीआचारांगसूत्रमें महावीर स्वामी 'संहरिज्जमाणे जाणई' ऐसे कहा और श्रीकल्पसूत्रमें 'न जाणई' ऐसे कहा"उत्तर जेठामूढमति कल्पसूत्रका विरोध बताता है परंतु श्रीकल्पसूत्रतोश्री इससे यहभी मालूम होता है कि टूढिये स्थूलभद्र का अधिकार मानते नहीं 10वेंगे ! वेशक इनके माने बत्तीस शास्त्रों में श्रीस्थूलभद्रका वर्णनही नहीं है तो फिर यह भोले कोको स्थूलभद्रका वर्णन शीलके ऊपर सुनार कर क्यों धोखे में डालते हैं। तथा झूठा बकवाद करके अपना गला क्यों सूवाते हैं ?
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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