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________________ ( २११ ) करके करनीजिससे बहुते फलकी प्राप्ति होवे जैसे श्रीठाणांगसूत्रके दशमें ठाणेमें कहा है कि दश नक्षत्रों में ज्ञान पढ़े तो वृद्धि होवे "दस णक्खत्ता णाणस्स बढढीकरा पण्णत्ता" यहांभी ऐसेही समझना। इसवास्ते जेठमलकी करी कुयुक्ति खोटी है। जिनवचन स्याद्वाद है एकांत नहींजोएकांतमाने उनको शास्त्रकारने मिथ्यात्वी कहाहै ॥ (३२-३३) "श्रीजंबूद्वीप पन्नत्तिमें पाँचमे आरे ६ संघयण और ६ संस्थान कहे और भीतंदुलवियालिय पयन्नेमें सांप्रतकाले सेवार्त संघयण और हुंडक संस्थान कहा है "उत्तर-श्रीजबूद्वीप पन्नत्ति में पांच में आरे मुक्ति कही है, तथापि सांप्रतकाले जैसे किसी को केवलज्ञान नहीं होता है, तैसे पांचमें आरेके प्रारंभमें ६ संघयण और ६ संस्थान थे परंतु हाल एक छेवठा संघयण और हुंडक संस्थान है। जेकर ही संघयण और दही संस्थान हाल हैं ऐसे कहोगे तो जंबूद्वीपपन्नत्तिमें कहे मुजिव हाल मुक्तिभी प्राप्त होनी चाहिये, जेकर इसमें अपेक्षा मानोगे तो अन्यवातोंमें अपेक्षा नहीं मानते हो और मिथ्या प्ररूपणा करते हो तिसका क्या कारण ? ॥ (३४) "श्रीभगवतीसूत्र में आराधनाके अधिकारमें उत्कृष्ट पंदरह भव कहे और चंद्रविजयपयन्नेमें तीन भव कहउत्तरचंद्रविजयपयन्नेमें जो आराधना लिखी है तिसके तो तीन ही भव हैं और जो पंदरे भव हैं सो अन्य आराधनाके हैं। (३५) "सूत्रमें जीव चक्रवर्तीपणा उत्कृष्टा दो वक्त पाता है, * यी समवायाग चूत्रमें भी यही काधन है ।। - -
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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