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________________ (१५) हैसो प्रथमा विभक्ति है तिसका अर्थ "निर्जराका अर्थी"जो साधे सो वेयावच्च कर ऐसा होता है,परंतुजेठेने सत्य अर्थ छोड़के दोनों शब्दों का एक सरीखा अर्थ लिखा है इसलिये मालूम होता है कि जेठेको व्याकरणका ज्ञान बिलकुल नहीं था, तथा जैसा सूत्रपाठ है वैसा उसको नहीं दिखा है,इससे यह भी मालूम होता है कि उसके नेत्रोंके भी कुछक आवरण था । ___ श्रीठाणांगसूत्र तथा व्यवहारसूत्रप्रमुख सूत्रोंमें दश प्रकारकी वेयावच्चकही है, जिसका समावेश पूर्वोक्तपंदरह बोलोमें हो गया है, इसवास्ते तिन दश भेदोंकी बाबत जेठेकी लिखी कुयुक्ति खोटी है। प्रश्नके अंतमें जेठे निन्हवने लिखाहै कि “उपधि और अन्न पाणीसे ही वेयावच्च करनी" यह समझजेठे ढूंढककी अकल विना की है, क्योंकि जो इन तीन भेदसे ही वेयावच्च करनी होवे तो चतुर्विध संघकी वेयावच्च करनेका भी पूर्वोक्त पाठमें कहा है, और संघमें तो श्रावक श्राविका भी शामिल हैं तो तिनकी वेयावच्च साधु किस तरह करे ? जो आहार तथा उपधिसे करे ऐसे ढूंटक कहते हैं तो क्या आप भिक्षा लाकर श्रावक श्राविकाको देवेंगे ? नहीं,क्योंकि ऐसे करना तिनका आचार नहीं है। तथा श्रावक श्राविकातो देने वाले हैं, लेना उनका आचार ही नहीं है; इस. वास्ते अरे ढूंढको ! जबाब दो कि तीसरे व्रतकोआराधने के उत्साह वाले साधुने चतुर्विध संघकी वेयावच्च किस रीतिसेकरनी? आखीर लिखने का यह है कि वेयावच्चके अनेक प्रकार हैं जिसकी जैसी संभवहोतेसीतिसकी वेयावच्च जाननी । इसलिये साधु जिनप्रतिमा की वेयावच्च करे सो बात संपूर्ण रीतिसे सिद्ध होती है । दूढिये इस
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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