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________________ (e) का.अधिकार वर्णन किया है,तथापि वो काल करके देवलोक में गये हैं, इसवास्ते अरे मूर्ख ढियो! जिन मंदिर कराने से नरक में जावे ऐसे कहते हो सो तुमारी दुष्टवुद्धिका प्रभाव है और इसीवास्ते सूत्रकारका गंभीर आशय तुम बेगुरेनहीं समझ सक्ते हो। जेठमलने लिखा है कि "जैनधर्मी आरंभमें धर्म मानते हैं"। उत्तर-जैनधर्मी आरंभ को धर्म नहीं मानते हैं, परंतु जिनाज्ञा तथा जिनभक्ति में धर्म और उस से महापुण्य प्राप्ति यावत् मोक्ष फल श्रीरायपसेणीसूत्र के कथनानुसार मानते हैं। . .. . जेठमल जिनमंदिर और जिनप्रतिमा कराने बाबत इस प्रश्नोत्तर में लिखता है,परंतु तिसकाप्रत्युत्तर प्रथम दो तीनवारलिखचुके हैं। . जेठमलने "देवकुल" शब्द.का अर्थ सिद्धायत करा है, परंतु देवकुल शब्द अन्य तीथिदेवके मंदिर में बोला जाता है, जिनमदिर के बदले देवकुल शब्द लौकिक में नहीं बोला जाता है । और सूत्रकारने किसी स्थल में भी नहीं कहा है, सूत्रकारने तो सूत्रों में जिनमंदिर के बदले सिद्धायतन, जिनघर,अथवा चैत्य कहा है, तोभी जेठेने खोटी खोटी कुयक्तियां लिखके स्वमति कल्पनासे जो मनमें आया सो लिख मारा है सो उसके मिश्वात्वके उदयका प्रभाव है,सिद्धायतन शब्द सिद्ध प्रतिमाके घर आश्री है, और जिन घर शब्द अरिहंतके मंदिर आनी द्रोपदीके आलावे में कहा है, इस वास्ते इन दोनों शब्दों में कुछभी प्रतिकूलभाव नहीं है,भावार्थ में तो दोनों एकही अर्थ को प्रकाशते हैं । इति ।। . . . (२४) साधजिनप्रतिमा की वेयावच्च करे। श्रीप्रश्न व्याकरण सूत्रके तीसरे संवर द्वारमें साधु पंदरां बोल
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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