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________________ रस्तेमें नदी उतरते हुए त्रस स्थावर की हिंसा करते हैं, पडिलहण में वायुकाय हणते हैं, नाक के तथा गुदा के पवनसे वाय काय मारते हैं,सदा मुंह बांधने से असंख्याते सन्मर्छिम जीव मारते हैं, मेघ वरसते में सञ्चित्त पानीमें लघु नीति तथा बड़ी नीति परठवते हैं, तिससे असंख्याते अपकायको मारते हैं, इत्यादि सैंकड़ों प्रकार से हिंसा करते हैं, इसवास्ते सो मंदबुद्धि यही हैं, और जेठे के लिखे मूजिब मरके नरक में ही जाने वाले हैं, इस अपेक्षा तो क्या जाने जेठे का यह लिखना सत्य भी हो जावे ! क्योंकि ढूंढकमत दुर्गति का कारण तो प्रत्यक्ष ही दखाई देता है। और जेठमलने "दक्षिण दिशा का नारकी होवे" ऐसे लिखा है, परंतु सूत्रपाठ में दक्षिण दिशा का नाम भी नहीं है, तो उसने यह कहां से लिखा ? मालूम होता है कि कदापि अपने ही उत्सूत्र भाषण रूप दोष से अपनी वैसी गति होनेका संभव उसको मालूम हुआ होगा और इसीवास्ते ऐसा लिखा होगा !! और शुद्ध मार्ग गवेषक आत्मार्थी जीवों को तो इस बात में इतना हीसमझने का है कि श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र का पूर्वोक्त पाठ मिथ्यादृष्टि अनार्यों की अपेक्षा है, क्योंकि इस पाठ के साथही इस कार्य के अधिकारी माछी, धीवर, कोली, भील,तस्कर,प्रमुखही कहे हैं, और विचार करोकि जो ऐसे न होवे तो कोई भी जीव नरकविना अन्य गति में न जावे, क्योंकि प्रायः गृहस्थी सर्व जीवों को घर, दुकान वगैरह करना पड़ता है, श्री उपासकदशांग सूत्रमें आनंद प्रमुख श्रावकोंके घर,हाट,खेत,गड्ड', जहाज, गोकुल,भष्ठियांप्रमुख आरंभ *कितनेक जूं लीय प्रमुख को कपड़े की टांकी में बांध के संथारा पच्चलाते पर्यात् मारते हैं तथा कितनेक गूगकोईटों से पीससे हैं, तिममें चूरणीये मारते हैं।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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