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काउंपिं जिणाययणेहिं मंडियं सव्वमेयणीवट्ट' दागाइच उक्केणं सढ्ढो गच्छेज्जअच्चुअंजाव
इसको असत्य ठहराने वास्ते जेठमलने लिखा है कि "जिन मंदिर जिनप्रतिमा करावे सो मंदबुद्धिया दक्षिण दिशाका नारकी होवे " उत्तर - यह लिखना महामिथ्या है। क्योंकि ऐसा पाठ जैनमत के किसी भी शास्त्रमें नहीं है, तथापि जेठमलने उत्सूत्र लिखतेहुए जरा भी विचार नहीं करा है जेकर जेठमल ढूंढक वर्त्तमान समय में होता तो पंडितों की सभा में चर्चा करके उसका मुंहकाला कराके उसके मुखमें जरूर शक्कर देते ! क्योंकि झूठ लिखने वाले को यही दंड होना चाहिये ॥
जेठमल लिखता है कि "श्रेणिक राजाको महावीर स्वामी ने कहा कि कालकसूरिया भैंसे न मारे, कपिलादासी दान देवे, पुनीया श्रावककी सामायिक मूल लेवे अथवा तू नवकारसीमात्र पच्चक्खाण करे तो तू नरकमें न जावे, यह चार बातें कहीं परंतु जिनपूजा करे तो नरक में न जावे ऐसे नहीं कहा " उत्तर - ढूंढिये जितने शास्त्र मानते हैं तिनमें यह कथन बिलकुल नहीं है तो भी इस बातका संपूर्ण खलासा दशमें प्रश्नोत्तर में हमने लिख दिया है ॥ जेठमलने श्री प्रश्नव्याकरण का पाठ लिखा है जिस से तो जितने ढूंढिये, ढूंढनियां, और उनके सेवक हैं वे सर्व नरक में जावेंगे ऐसे सिद्ध होता है । क्योंकि श्रीप्रश्नव्याकरण के पूर्वोक्त पाठ में लिखा है कि जो घर, हाट, हवेली, चौतरा, प्रमुख बनावे सो मंद बुद्धिया और मरके नरक में जावे । सो ढूंढिये ऐसे बहुत काम करते हैं। तथा ढूंढक साधु, साध्वी, धर्मके वास्ते विहार करते हैं,