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( ) की वैयावच्च करे ऐसा कथन है तिनमें पंदरमा बोल जिनप्रतिमा का है तथापि जेठे निन्हवने चउदां बोल ठहराक पंदरमें बोलकाअर्थ विपरीत कियाहै इसवास्ते सो सूत्रपाठ अर्थसहित लिखते हैं।यतः
अह करिसए पुण आराहए क्यमिणं जेसे उवही भत्तपाणे संगहदाण कुसले अच्चंत बाल,१,दुम्बल,२, गिलाण,३,बुढ्ढ, ४,खवगे, ५,पवत्त,६,आयरिय,७, उवझाए, ८, सेहे,
साहम्मिए,१०,तवस्सी,११, कुल,१२, गण, १३, संघ,१४, चेइयढे,१५,निज्जरी वेयावच्चे
अणिस्सियं दसविहं बहुविहं पकरे ॥ - अर्थ-शिष्य पूछता है " हे भगवन् ! कैसा साधु तीसरा बत आराधे ?” गुरु कहते हैं "जो साधु वस्त्र तथा भातपाणी यथोक्त विधिसे लेना और यथोक्त विधिसे आचार्यादिकको देना तिनमें कुशल होवे सो साधु तीसरा व्रत आराधे । अत्यंत बाल (१) शक्ति हीन (२) रोगी (३) वृद्ध (४) मास क्षपणादि करने वाला(५)प्रवर्तक (६) आचार्य (७) उपाध्याय (८) नव दीक्षित शिष्य (९) सार्मिक (१०) तपस्वी(११)कुलचांद्रादिक (१२)गण कुलका समुदाय कौटिकादिक (१३) संघ कुलगणका समुदाय चतुर्विध संघ (१४) और चैत्य जिनप्रतिमा इनका जो अर्थतिनमें निर्जराका अर्थी साधु कर्म क्षय वांछता हुआ यश मानादिककी अपेक्षा विना दश प्रकारसे तथा बह विधसे वेयावच्च करे सो साधु तीसरा व्रत आराधे। इस