SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (. १६८ ) भेद किसी जगह नहीं कह हैं, तथा किसी भी मिथ्यादृष्टिने किसी भी अन्य देवके आगे नमुथ्थुणं पढ़ा ऐसेभी सूत्रमें नहीं कहा है, क्योंकि नमुथ्थुणं में कहे गुण सिवाय तीर्थंकर महाराज के अन्य किसी में नहीं हैं, इसवास्ते नमुथ्थुणं कहना सो सम्यग्दृष्टिकी ही करणी है ऐसे मालूम होता है। 7 (२८) जेठमल कहता है कि-"किसी देवताने साक्षात् केवली भगवंतको नमुथ्थुणं नहीं कहा है.” सो असत्य है, सुर्याभ देवताने वीर प्रभुको नमुथ्थुणं कहा है ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्रमें प्रकट पाठ है। ... - (२९)जेठमल जीत आचार ठहराके देवतो की करणी निकाल देता है परंतु अरेढूंढिये ! क्या देवता की करणी से पुण्य पापका बंध नहीं होता है ? जो कहोगे होता है तो सुर्याभने पूर्वोक्त रीतिसे श्रीवीर प्रभु की भक्ति करी उससे तिसको पुण्यका बंध हुआ या पाप का? जो कहोगे कि पुण्य या पाप किसी का भी बंध नहीं होता है तो जीव समयमात्र यावत् सातकर्म बांधे विनानहीं रहे ऐसे सूत्रमें कहा है सो कैसे मिलाओगे ? परंतु समझनेका तो इतनाही है,कि सुर्याभ तथा अन्यदेवतेजो पूर्वोक्त प्रकार जिनेश्वर भगवंत कीभक्ति करते हैं,सो महापुण्य राशि संपादन करते हैं, क्योंकि तीर्थंकर भगवंतकी इस कार्य में आज्ञा है। (३०) जेठमल “पुब्बिं पच्छा" का अर्थ इस लोक संबंधी ठहराता है और “पेच्चा"शब्दका अर्थ परलोक ठहराता है सो जेठमल की मूढ़ता है, क्योंकि 'पुब्धि पच्छा'का अर्थ पूर्व जन्म' और 'अगला जन्म' ऐसा होता है; 'पेच्चा' और 'पच्छा' पर्यायी शब्द है, इन दोनोंका एकही अर्थ है जेठे ने खोटा अर्थ लिखा है इससे निश्चय होता है कि जेठमलको शब्दार्थ की समझ ही नहीं थी, श्री आचा
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy