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________________ (us")' का यह लिखना महा अविवेक का है, क्योंकि जिनप्रतिमा कीभक्ति जैसे उचित होवे तैसे होती है, अनुचित नहीं होती है ; परंतु सर्व भोगमें स्त्री प्रधान है ऐसाजो ढूंढिये मानते हैं तो तिनके बेअकल श्रावक अशन,पान,खादिम, स्वादिम प्रमुख पदार्थों से अपने गुरुओं की भक्ति करते हैं परंतु तिनमें से कितनेक ढूंढियों ने अपनी कन्या अपने रिख-साधुओं के आगे धरी हैं और विहराई हैं तो दिखाना चाहिये ! जेठमलके लिखे मूजिवतों ऐसे जरूर होना चाहिये !!! तथा मुर्ख शिरोमणि जेठे के पूर्वोक्त लेखसे ऐसे भी निश्चय होता है कि तिसजेठेके हृदयसे स्त्री की लालसा मिटी नहीं थी इसीवास्ते उसने सर्व भोगमें स्त्री को प्रधान माना है इसबात का सबूत ढूंढक पट्टावलिमें लिखागया है। " (२६) जेठमल लिखता है कि “चैत्य, देवता के परिग्रह में गिना है तो परिग्रहको पूजे क्या लाभहोवे ?” उत्तर-सूत्रकारने साधुके शरीर कोभी परिग्रह में गिना है तो गणधर महाराजको तथा मुनियोंको वंदना नमस्कार करनेसे तथा तिनकी सेवा भक्ति करने से जेठमलके कहने मूजिबतो कुछ भीलाभ न होना चाहिये और सूत्र में तो बड़ाभारी लाभ बताया है, इसवास्ते तिसका लिखना मिथ्या है,क्योंकि जिसको अपेक्षा का ज्ञान न होवे तिसको जैनशास्त्र समझने वहुत मुशकिल हैं, और इसीवास्ते चैत्यको देवता के परिग्रह में गिना है तिसकी अपेक्षा जेठमलके समझने में नहीं आई है इस तरह अपेक्षा समझे विना सूत्रपाठके विपरीत अर्थ करके भोले लोगों को फंसाते हैं इसीवास्ते तिनको शास्त्रकार निन्हव कहते हैं । (२७) नमुथ्थुणं की बाबत जेठमलने जो कुयुक्ति लिखीह और तीन भेद दिखाये हैं सो बिलकुल खोटहैं,क्योंकि इस प्रकारके तीन
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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