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________________ ( 1) इसमें जेठमलने “साधुको पांच प्रकारके रजोहरण रखने शास्त्र में कहे हैं तिनमें मोरपीछी का रजोहरण नहीं कहा है" ऐसे लिखा है, परंतु तिसका इसके साथ कोई भी संबंध नहीं है। क्योंकि मोरपीछी प्रभुका कोई उपगरण नहीं है, सोतो जिनप्रतिमा के ऊपरसे बारीक जीवोंकी रक्षाके निमित्त तथा रज प्रमुख प्रमार्जने के वास्ते भक्ति कारक श्रावकों को रखने की है ॥ (५) सर्याभने प्रतिमाको वस्त्र पहिराये इस बाबत जेठमल लिखता है कि "भगवंत तो अचेल हैं इसवास्ते तिन को वस्त्र होने नहीं चाहिये" यह लिखना बिलकुल मिथ्या है क्योंकि सूत्र में वावीस तीर्थंकरों को यावत् निर्वाण प्राप्तहुए तहांतक सचेल कहा है और वस्त्र पहिरानेका खुलासा द्रौपदीके अधिकारमें लिखा गया है। (६) प्रभुको गेहने न होवे इस बावत "आभरण पहिराये सो जुदे और चढ़ाये सो जुदे” ऐसे जेठमल कहता है, परंतु सो असत्य है; क्योंकि सूत्र में “आभरणारोहणं " ऐसा एक ही पाठ है, और आभरण पहिराने तो प्रभुकी भक्ति निमित्त ही है। . (७) स्त्रीके संघ बाबतका, प्रत्युत्तर द्रौपदीके अधिकार में लिख आए हैं। (८) “सिद्धायतन में जिनप्रतिमाके आगे धूप धुखाया और साक्षात् भगवंतके आगे न धुखाया" ऐसे जेठमल लिखता है परंतु सो झूठ है; क्योंकि प्रभुके सन्मुख भी सुर्याभ की आज्ञा से तिस के आभियोगिक देवताओं ने अनेक सुगंधी द्रव्यों करी संयुक्त धूप धुखाया है ऐसे श्रीरायपसेणी सूत्र में कहा है। ...(२५) जेठमल कहता है कि “सर्व भोगमें स्त्री प्रधान है, इसवास्ते स्त्री क्यों प्रभुको नहीं चढ़ाते हो?" मंदमति जेठमल
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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