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________________ . ( ६ ) रांग सूत्र में कहा है कि " जस्ल नथि पुट्विं पच्छा मज्झे तस्स कउसिया” अर्थात् जिसको पूर्व भव और पश्चात् अर्थात् अगले भवमें कुछ नहीं है तिसको मध्यमें भी कहांसे होवे? तात्पर्य जिस को पूर्व तथा पश्चात् है तिसको मध्यमें भी अवश्य है, इसवास्ते सुर्याभ की करी जिनपूजा तिसको त्रिकाल हितकारिणी है, ऐसे श्रीरायपसणी सूत्रके पाठका अर्थ होता है। और श्री उत्तराध्ययन सूत्र में मृगापुत्रके संबंध में कहा है कि:अम्मत्ताय मए भोगा भत्ता विसफलोवमा ॥ पच्छा कडुअविवागा अणुबंध दुहावहा ॥१॥ अर्थ-हे माता पिता ? मैंने विष फल की उपमा वाले भोग भोगे हैं, जो भोग कैसे हैं ? 'पच्छा' अर्थात् अगले जन्म में कड़वा है फल जिनका और परंपरासे दुःख के देनेवाले ऐसे हैं। इस सूत्र पाठमें भी 'पच्छा' शब्द का अर्थ परभव ही होता है। किं बहुना ॥ (३१) जेठमल सुर्याभके पाठमें बताये जिन पूजाके फल की वावत "निस्सेसाए"अर्थात् मोक्षके वास्ते ऐसा शब्द है तिस शब्द का अर्थ फिराने वास्ते भगवतीसूत्रमें से जलते घरसे धन निकालने का तथा वरमी फोंडके द्रव्य निकालनेका अधिकार दिखाता है, और कहता है कि "इस संबंध भी” (निस्सेसाए ) ऐसा पद है इसवास्ते जो इसपदका अर्थ 'मोक्षार्थे' ऐसा होवे तो धन निकालने से मोक्ष कैसे होवे ? तिसका उत्तर-धनसे सुपात्रमें दानदेवे, जिन, मंदिर, जिनप्रतिमा बनवावे, सातों क्षेत्रों में, तीर्थयात्रा में, दयामें तथा दानमें धन खरचे तो उससे यावत् मोक्षप्राप्त होवे इसवास्ते सूत्र में जहाँ जहां "निस्सेसाए " शब्द है तहां तहां तिस शब्दका
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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