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भव्य सर्व जीव सम्यग्दृष्टि हुए नहीं और सिद्धि भी नहीं पाये।"
उत्तर-अपना मतसत्य ठहराने वालेने सूत्रमें किसीभी मिथ्या दृष्टि देवताने सिद्धायतनमें जिनप्रतिमाकी पूजा करी ऐसा अधि. कार होवे तो सो लिखके अपना पक्ष दृढ़ करना चाहिये । जेठमल ने ऐसा कोई भी सूत्रपाठ नहीं लिखा है किंतु मनः कल्पित बातें लिख के पोथी भरी है,इसवास्ततिसका लिखना बिलकुल असत्य है, क्योंकि किसी भी सूत्र में इस मतलबका सूत्रपाठ नहीं है।
और जेठमलने लिखा है कि " प्रतिमा पूजने से कोईअभव्य सम्यग्दृष्टि न हुआ इसवास्ते जिनप्रतिमा पूजनेसे फायदा नहीं है" उत्तर-अभव्य के जीव शुद्ध श्रद्धायुक्त अंतःकरण विना अनंतीवार गौतमस्वामी सदृश चारित्र पालते हैं और नवमें ग्रेवेयक तक जाते हैं,,परंतु सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं; ऐसे सूत्रकारोंका कथन है, इस वास्ते जेठमलके लिखे मुजिब तो चारित्र पालने से भी किसी ढूंढक को कुछ भी फायदा नहीं होगा ॥
(१८) पृष्ठ (१०२) में जेठमलने सिद्धायतन में प्रतिमा की पूजा सर्व देवते करते हैं ऐसे सिद्ध करनेके वास्ते कितनीक कुयुक्तियां लिखी हैं सो सर्व तिसके प्रथमके लेखके साथ मिलती हैं तो भी भोले लोगोंको फंसाने वास्ते वारंवार एककी एक ही बात लिख के निकम्मे पत्रे काले करे हैं।
(१९) जेठमल लिखता है कि "सर्व जीव अनंतीवार विजय पोलीए पणे उपजे हैं तिन्होंने प्रतिमाकी पूजाकरी तथापिअनंतेभव क्यों करने पड़े ? क्योंकि सम्यक्त्त्ववान् को अनंते भव होवे नहीं ऐसा सूत्रका प्रमाण है" उत्तर-सम्यक्त्ववान् को अनंते भव होवे नहीं ऐसे जेठमल मूढमति लिखता है सो बिलकुल जैन शैलिसे